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(१.५) अन्वय गुण-व्यतिरेक गुण
हैं और दो वस्तुओं को नज़दीक लाने से तीसरा ही परिणाम उत्पन्न हो जाता है।
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प्रश्नकर्ता: दादा, इसका अर्थ ऐसा हुआ न कि, ज्ञान था, अज्ञान था, ये दोनों पास-पास आए इसलिए ...
दादाश्री : (मूल आत्मा में) अज्ञान तो था ही नहीं । अज्ञान जैसी चीज़ ही नहीं थी । यह अज्ञान तो खड़ा हो गया है । जैसे कि वे सेठ जब शराब पीते हैं न, तो शराब पीने से पहले कुछ था ?
प्रश्नकर्ता : नहीं था ।
दादाश्री : वैसा ही है । उसका असर हो गया है। ‘उस पर' संयोगों का असर हो गया है ।
प्रश्नकर्ता : अकारण तो कुछ होता ही नहीं है न ?
दादाश्री : नहीं ! कारण में, उसे संयोग मिले इसलिए हो गया । अब संयोगों से मुक्त हो जाएगा तो छूट जाएगा ।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् ज्ञान के सामने संयोग आ गया ?
दादाश्री : हाँ! आत्मा और दूसरे संयोग । (स्वाभाविक) ज्ञान, वह (मूल) आत्मा है और दूसरे संयोग मिल गए इसलिए भ्रांति उत्पन्न हुई ।
प्रश्नकर्ता : अत: उसे संयोगों का स्पर्श हुआ ?
दादाश्री : संयोगों का दबाव आया । (इसलिए विशेष भाव, 'मैं', व्यवहार आत्मा, उत्पन्न हो गया ।)
प्रश्नकर्ता : क्योंकि आत्मा पर तो कोई असर नहीं होता फिर भी असर क्यों हुआ ?
दादाश्री : हुआ न असर । ( व्यवहार आत्मा पर ) असर हुए बगैर रहेगा ही नहीं न! फिर भी (मूल) आत्मा जैसा था वैसा ही है । सिर्फ बिलीफ ही बदली है ।