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[४] प्रथम फँसाव आत्मा का
वर्ल्ड, इट सेल्फ पज़ल इस संसार के स्पर्श से यह विशेष गुण उत्पन्न हो गया है। जब उसका समय परिपक्व होगा तब वह विशेष गुण बंद हो जाएगा। उसकी अमल (असर) उतर जाएगा। इस संसार की अमल अर्थात् भ्रांति। वह अमल चला जाएगा तो ठीक हो जाएगा। जो वह खुद है, वही बनकर रहेगा। अर्थात् जब ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है फिर वहाँ पर उत्पन्न करना कहाँ रहा? तो यह जगत् उत्पन्न हुआ ही नहीं है, जगत् सनातन है। कभी भी इसकी आदि थी ही नहीं फिर इसे ढूँढना कहाँ रहा? फिर बनाने वाला है, ऐसा कहने की भी ज़रूरत नहीं है। द वर्ल्ड इज़ द पज़ल इटसेल्फ, इटसेल्फ पज़ल हो गया है यह। गॉड हैज़ नॉट पज़ल्ड दिस वर्ल्ड एट ऑल। (यह दुनिया एक स्वयंभू पहेली है। स्वयंभू पहेली हो चुकी है यह। इस दुनिया को भगवान ने नहीं रचा है।)
नहीं है आदि अज्ञानता की प्रश्नकर्ता : दादा! तो किस तरह से पहली अज्ञानता पैदा हुई है, पूरी दुनिया में?
दादाश्री : वह तो पहले से थी ही। शुरुआत हुई ही नहीं है। (ज्ञानी से ज्ञान मिलने के बाद) उसका एन्ड आता है।
प्रश्नकर्ता : एन्ड आता है तो बिगिनिंग कहाँ से हुई?
दादाश्री : यह सब था, था और था ही। क्योंकि छ: अविनाशी तत्त्व एक साथ थे, उन्हें अलग किया जाए तो तुरंत ही अलग हो जाता