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आप्तवाणी - १४ ( भाग - १
विशेष भाव से क्या होता है कि ये आठ द्रव्यकर्म बंधते हैं, आँखों पर पट्टी होने की वजह से । और आठ द्रव्यकर्म होने की वजह से वापस दूसरे भावकर्म उत्पन्न होते हैं । भावकर्म कौन करवाता है ? आँखों पर ये जो पट्टियाँ हैं, वे ही ये भावकर्म करवाते हैं।
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प्रश्नकर्ता : वे कर्म तो बाद में हुए, लेकिन शुरुआत में जब विशेष भाव हुआ, तब फिर ये पट्टियाँ कहाँ से आई ?
दादाश्री : संयोगों के दबाव से विशेष भाव उत्पन्न हुआ और विशेष भाव की वजह से ही ये पट्टियाँ बंधीं और पट्टियाँ बंधीं इसलिए उल्टा दिखने लगा, उससे उल्टे भाव उत्पन्न हुए। वे (भाव) पट्टियों की वजह से हैं, आत्मा की वजह से नहीं हैं वे ।
ये जो आठ द्रव्यकर्म हैं, ज्ञानावरण, दर्शनावरण... आत्मा की उपस्थिति से उनमें पावर आ गया है, आत्मा उनमें नहीं आया है और वह पावर यह काम कर रहा है। और फिर वह पावर भी जड़ । अतः ये सारी जड़ की क्रियाएँ हैं । आत्मा की कोई क्रिया नहीं है
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प्रश्नकर्ता : सामीप्य भाव के कारण उत्पन्न हुए पावर की ही यह प्रेरणा है ?
दादाश्री : हाँ, सही है ।
चेतन खुद के अन्वय गुणों से बंधा हुआ है, खुद के स्व गुणों से । उसमें अन्य गुण उत्पन्न नहीं होते । सिर्फ भान में, बिलीफ ही बदली है । 'खुद को' ('मैं' को) ऐसा भान होता है कि 'यह मैं कर रहा हूँ'। उस भान में जो परिवर्तन होता है, वह किसे होता है ? पावर चेतन को (अर्थात् 'मैं' को) । अब वह भान टूटेगा कब ? ज्ञानी पुरुष प्रकृति और पुरुष दोनों को अलग कर देंगे, तब वह भान टूटेगा, नहीं तो भान टूटेगा ही नहीं न!
अर्थात् यह पावर से भरा हुआ है । जैसे बेटरी में सेल होता है न, उस सेल में पावर भरने के बाद में वह फल देता है, काम देता है । नहीं देता? कब तक? जब तक भरा हुआ माल है, पूरण किया है तो गलन होने तक वह पावर फल देगा। गलन हो जाने के बाद में निकाल देना