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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
का, अवस्था का, विशेष गुण बताता हूँ। तत्व के विशेष गुण आप देख नहीं सकते इसलिए आपको अवस्था से बताता हूँ कि यह किस तरह से उत्पन्न हो गया है!
प्रश्नकर्ता : आप ज़रा दृष्टांत देकर समझाइए न कि ये जो मिल गए हैं, उसका मूल कारण क्या है?
दादाश्री : इसकी सिमिली तत्वों में नहीं मिलती फिर भी यह सिमिली दे रहा हूँ, उसमें से मुझे कारण ढूँढकर दो। जैसे कि हमने बगीचे में संगमरमर डलवाया हो, संगमरमर की रोड बनवाई हो तो सेठ वहाँ पर रोज़ बूट पहनकर आते-जाते हैं। उस समय उन्हें क्या पता चले कि इस पत्थर का स्वभाव क्या है ? तो फिर एक दिन दोपहर को दो बजे बच्चा वहाँ पर खेलते-खेलते गिर गया तो ये नंगे पैर वहाँ पर दौड़कर गए, गर्मी के दिनों में! तब संगमरमर हमें क्या फल देगा?
प्रश्नकर्ता : गर्मी, गर्मी।
दादाश्री : नहीं! गर्मी तो ऊपर भी लगती है लेकिन पैर पर क्या असर होता है?
प्रश्नकर्ता : जला देता है।
दादाश्री : हाँ, जल जाते हैं। तब सेठ को ऐसा भ्रम घुस जाता है कि इस कॉन्ट्रैक्टर ने क्या किया? ऐसे गरम पत्थर क्यों लगाए इन लोगों ने? तो वे कॉन्ट्रैक्टर को डाँटते हैं कि 'भाई तूने गरम पत्थर लगाए इसलिए तेरे पैसे काट लूँगा'। तब कॉन्ट्रैक्टर खुलासा करता है कि 'साहब, मैंने गरम पत्थर नहीं लगाए हैं। पत्थर तो ठंडे ही लगाए थे लेकिन इस सूर्यनारायण के संयोग से ये गरम हो गए हैं। अभी जब सूर्यनारायण अस्त हो जाएँगे तो तुरंत ये अपने स्वभाव में आ जाएँगे'। यानी कि इन सूर्यनारायण की उपस्थिति से ये गरम हो गए हैं। इससे विशेष गुण उत्पन्न हुआ और जब सूर्यनारायण चले जाएँगे तब विशेष गुण खत्म हो जाएगा।
उसी प्रकार से यह अहंकार खड़ा हो गया है। अब ऐसा स्पष्टीकरण शास्त्र ने दिया हुआ नहीं होता है न! और ऐसे उदाहरण दे भी कौन?