________________
(१.३) विभाव अर्थात् विरुद्ध भाव?
३५
गुण उत्पन्न हो गए। सिर्फ आत्मा से नहीं हो सकते और सिर्फ अनात्मा से भी नहीं हो सकते। इसलिए यहाँ से एक को हटा दिया जाए तो फिर उत्पन्न नहीं होंगे।
प्रश्नकर्ता : उपस्थिति में भी उसे मेरा माना इसलिए हुए न?
दादाश्री : मेरा मानने वाला वह कौन है ? आत्मा भी 'मेरा' नहीं कहता और पुद्गल भी ‘मेरा' नहीं कहता।
प्रश्नकर्ता : लेकिन अभी पास-पास तो हैं न?
दादाश्री : वे पास-पास हैं, इसलिए पूरी जागृति खत्म हो गई। जागृति उत्पन्न होने पर अलग हो गए। व्यतिरेक गुण बंद!
प्रश्नकर्ता : अब वही! पास वाली कौन सी जागृति हो गई थी?
दादाश्री : पास में आए तो उन पर आवरण आ गया, जागृति खत्म हो गई। तो फिर जब पास में आने पर आने वाला आवरण तोड़ दिया तो अलग हो गया। आवरण तोड़ने होते हैं न?
प्रश्नकर्ता : अतः दोनों द्रव्य तो भिन्न ही हैं लेकिन इनके पास में आने के कारण यह हो गया था?
दादाश्री : भिन्न ही हैं, किसी ने कुछ किया ही नहीं है। किसी ने किसी की मदद नहीं की। किसी ने किसी का नुकसान नहीं किया। कुछ है ही नहीं। यह सब आपकी ही भूल है। और फिर वे लोग भी कबूल करते हैं कि कोई द्रव्य किसी दूसरे द्रव्य की मदद नहीं कर सकता। कोई नुकसान नहीं करता। तो 'भाई, यह किसने किया, ढूँढ निकाल न? आत्मा ने किया या अनात्मा ने किया?' तब लोग वह जवाब समझते नहीं हैं। वैज्ञानिक बात है यह।
विशेष स्पष्टता, विभाव अवस्था की... विशेष गुण आपकी समझ में आया न? ये तत्व के विशेष गुण हैं, ये एक्जेक्ट होते हैं लेकिन मैं आपको उसकी सिमिली में दूसरा, यहाँ