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आत्मा के गुण या मूल द्रव्य नहीं बदलते लेकिन पर्याय बदलते हैं, उसे धर्म कहा गया है। ज्ञाता-दृष्टापन, वह धर्म है। उसकी शुरुआत कहाँ से होती है ? अनंत भाग वृद्धि सब से कम मात्रा में वृद्धि। असंख्यात भाग वृद्धि अर्थात् बहुत ही कम मात्रा में बढ़ता है। संख्यात भाग उससे अधिक बढ़ता है। उसी प्रकार हानि के लिए रिवर्स समझना है।
हानि व वृद्धि पर्यायों में होती हैं। जब वृद्धि होती है तब :
अनंत भाग वृद्धि → असंख्यात भाग वृद्धि → संख्यात भाग वृद्धि → संख्यात गुण वृद्धि → असंख्यात गुण वृद्धि - अनंत गुण वृद्धि
जब हानि होती है तब :
अनंत गुण हानि → असंख्यात गुण हानि → संख्यात गुण हानि → संख्यात भाग हानि → असंख्यात भाग हानि - अनंत भाग हानि → अनंत भाग वृद्धि...
अभी, पहले लोगों की चहल-पहल की शुरुआत अनंत भाग वृद्धि से होती हैं। वह सिद्ध भगवान के खुद के द्रव्य में झलकता है।
जब वृद्धि होती है तब :
अनंत भाग वृद्धि - सुबह ३-४ बजे - लाख में से १०-२० लोग चलते-फिरते दिखाई देते हैं।
असंख्यात भाग वृद्धि - सुबह ५-६ बजे - लाख में से ५०-१०० लोग बढ़ते हैं।
संख्यात भाग वृद्धि - सुबह ७-८ बजे - लाख में से ५००-७०० लोग बढ़ते हैं।
संख्यात गुण वृद्धि - सुबह ९-१० बजे - लाख में से २-३ हज़ार लोग बढ़ते हैं।
असंख्यात गुण वृद्धि - सुबह १०-११ बजे - लाख में से १२-१५ हज़ार लोग बढ़ते हैं।
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