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विभाव अर्थात् विरुद्ध भाव ?
परिभाषा विभाव की
प्रश्नकर्ता : ये कषाय क्या विभाव के कारण उत्पन्न होते हैं ? क्या स्वरूप में नहीं रहते हैं और स्वरूप में से च्युत होने पर वे सभी विभाव भाव, कषाय के भाव उत्पन्न होते हैं ?
दादाश्री : विभाव भाव किसके हैं ? विभाव का मतलब क्या है ?
प्रश्नकर्ता : स्वभाव से विपरीत जाना ।
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दादाश्री : नहीं! वह तो, लोगों ने इसका ऐसा अर्थ निकाला है विभाव का अर्थ, ‘स्वभाव से विपरीत जाना'। उसे यदि आदत या बुरी आदत पड़ जाए न, तब तो मोक्ष में भी बैठे नहीं रह सकेगा । वहाँ से वापस दौड़कर यहाँ आ जाएगा। विभाव का अर्थ यह नहीं है । यदि आत्मा विभावी होता न, तब तो कभी भी कोई आत्मा वहाँ पर मोक्ष में रहता ही नहीं। ऐसी छोटी-छोटी भूलें तो इतनी सारी हुई हैं कि पूरा जगत् उनमें तपकर मर गया है ! विभाव को समझना चाहिए या नहीं ?
प्रश्नकर्ता : शास्त्र कहते हैं कि 'आत्मा ने विभाव किया है'। दादाश्री : 'विभाव किया, इससे आप क्या समझे ?
प्रश्नकर्ता : ऐसा समझते हैं कि उसने विभाव की वह भावना
की।
दादाश्री : अब यदि आत्मा विभाव की भावना करने लगे तब तो वह उसका खुद का स्वभाव हो गया ।