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वर्तमान में ही बरतते हैं। अवस्थाएँ डिस्चार्ज हैं, वे वापस कभी भी नहीं आतीं।
अवस्थाएँ स्वाहा कब होती हैं ? जब ज्ञाता अवस्थाओं को ज्ञेय के रूप में अलग 'जाने', मन बिगड़े तो अनेक बार प्रतिक्रमण करके उसे साफ कर ले, तब आत्मा चिपके हुए पर्यायों से मुक्त हो जाता है!
यदि अवस्थाओं को पकड़ा नहीं जाए तब भी चली जाएँगी और पकड़कर रखा जाए तब भी चली जाएँगी इसलिए उन्हें बाय-बाय कर देना।
अज्ञानी अवस्थाओं में पोतापना मानता है, मानता है कि 'मैं ही हूँ'। ज्ञानी उन्हें मात्र ‘देखते' और 'जानते' हैं !
जिस दवाई से रोग मिटे, वही दवाई सही है। जिस ज्ञान से संसार छूटे वास्तव में वही आत्मज्ञान है। जब ज्ञान का उपयोग हो तब उसे प्रज्ञा कहते हैं।
जे पद श्री सर्वज्ञे दीठं ज्ञानमां. कही शक्या नहीं ते पद श्री वीतराग जो. तेह स्वरूपने अन्य वाणी ते शुं कहे? अनुभव गोचर मात्र रघु ए ज्ञान जो. अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे?
-श्रीमद् राजचंद्र दादाश्री बहुत ज़ोर देकर कहते हैं, 'काम निकाल लो, काम निकाल लो, काम निकाल लो, यह बुलबुला फूटे उससे पहले!!!'
-डॉ. नीरू बहन अमीन
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