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(१.२) क्रोध-मान-माया-लोभ, किसके गुण?
है। आत्मा भाव नहीं करता। अहंकार ही भाव करता है कि मुझे इसे मारना है इसलिए उसे सारे पुद्गल वैसे ही मिलते हैं। उसने मारने का भाव किया न, इसलिए उसे अगले जन्म में किसी को मारना ही पड़ता है और उसके बाद उसका रिएक्शन आता है, तब फिर वह इसे मारता है। संसार चलता ही रहेगा, ऐसा करते-करते...
इसमें भूल किसकी है? भुगते उसकी। क्या भूल है ? तो वह यह कि 'मैं चंदूभाई हूँ', तेरी वह मान्यता तेरी भूल है क्योंकि कोई दोषित है ही नहीं इसलिए यह साबित हो जाता है कि कोई गुनहगार नहीं है। गुनहगार नहीं है इसलिए कोई गुनाह करता ही नहीं है ऐसा साबित हो जाता है न? तब पूछते हैं कि 'क्या है इसके पीछे ?' तो वह यह है कि यदि चेतन गुनाह करेगा तो परेशानी होगी। चेतन तो गुनाह करता नहीं है। चेतन, चेतन भाव ही करता है और उसमें से पुद्गल बन जाता है। यह पुद्गल बनता है उसमें से ही यह सारी झंझट हो गई हैं। लेकिन वह भी दःखदायी नहीं है। वह तो सिर्फ संग्रहस्थान में जाने के समान है। आमने-सामने मिलन होता है, ऐसा होता है। मैं यह हूँ, वही दुःखदायी है। 'मैं चंदूभाई हूँ', वही दुःखदायी है, वह मान्यता हटी कि खत्म। कोई गुनहगार जैसा है ही नहीं जगत् में।
यदि कोई गुनहगार दिखाई देता है तो, वह तो आपके साथ जो क्रोध-मान-माया-लाभ, जो व्यतिरेक गुण हैं न, वे दिखाते हैं। खुद की दृष्टि से गुनहगार नहीं देखता। क्रोध-मान-माया-लोभ दिखाते हैं। जिसे क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं हैं, उसे कोई दिखाने वाला है ही नहीं और दिखाई भी नहीं देता। वास्तव में ऐसा है ही नहीं। क्रोध-मान-माया-लोभ घुस गए हैं और 'मैं चंदूभाई हूँ', ऐसा मानने से घुस गए हैं। वह 'चंदूभाई' वाली मान्यता टूट गई तो चले जाएँगे। घर खाली करने में ज़रा देर लगेगी, बहुत दिनों से घुसे हुए हैं न?
प्रश्नकर्ता : चेतन, चेतन भाव करता है, उससे यह पुद्गल उत्पन्न होता है या फिर चेतन के विभाव करने से पुद्गल उत्पन्न होता है?
दादाश्री : चेतन, चेतन भाव ही करता है। चेतन में स्वभाव और