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[२] क्रोध-मान-माया-लोभ, किसके गुण?
वे हैं व्यतिरेक गुण आपको कुछ समाधान हो रहा है या यों ही? उलझन हो रही हो तो फिर से पूछना। ऐसा नहीं है कि रुक जाने की ज़रूरत है।
आपमें क्रोध-मान-माया-लोभ हैं या नहीं? प्रश्नकर्ता : हैं ही न!
दादाश्री : वे आपके खुद के गुण हैं या जड़ के? चेतन के गुण हैं या जड़ के?
अब सभी साधु-सन्यासी ऐसा जानते हैं कि जड़ में नहीं हैं, क्रोधमान-माया-लोभ चेतन के बगैर हो नहीं सकते, वह सब उलझा हुआ है। उलझन, उलझन! हम कहें, 'चेतन के गुण हैं या जड़ के?' तो कहते हैं, 'चेतन के'। साफ-साफ कह देते हैं। अब, ये गुण चेतन के नहीं हैं, बेचारे के। अब, उल्टे गुण मानने से क्या होगा? आत्मा कभी भी प्राप्त नहीं हो सकेगा।
तो बड़े-बड़े पंडित वगैरह कहते हैं कि क्रोध-मान-माया-लोभ तो चेतन का ही धर्म है। मैंने कहा, 'शांति हो गई अब! तब तो वे वहाँ सिद्धगति में भी साथ में आते आराम से। अब, वह चेतन का धर्म नहीं है'। तो पूछते हैं, 'जड़ का धर्म है?' तब मैंने कहा, 'नहीं, जड़ का भी नहीं है, भाई'। तब पूछते हैं, 'तो क्या वह ऊपर से आ गिरा?' तब मैंने कहा, 'हाँ! वह, ऊपर से आ गिरा हो, वैसा ही है। इसे पूरा समझो, विज्ञान है यह तो' और विज्ञान के सिवा चाहे कैसी भी माथापच्ची करें