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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
नहीं है। जैसे कि झूले में बैठने से पहले समझता है कि खुद ठीक है, तबियत अच्छी है लेकिन झूले में बैठने के बाद जब उतरता है तब उल्टी होती है, चक्कर आते हैं और सबकुछ घूमता हुआ दिखाई देता है। तब हम से क्या कहता है, 'अरे! यह सब घूम रहा है, यह सब घूम रहा है'। तब हमें उसे पकड़ लेना पड़ता है। यह सबकुछ घूम रहा है' कहता है, वही भ्रांति है। उसके बाद पता चलता है कि पहले तो मैं अच्छा था लेकिन यह जो घूमता हुआ दिखाई दे रहा है, वह मैं नहीं घूम रहा हूँ, भ्रांति के बारे में उतना भान होता है। लेकिन इन सभी को तो ऐसा ही लगता है कि 'मैं ही कर रहा हूँ' अर्थात् भ्रांति है, वह भी पता नहीं है। हिन्दुस्तान में अभी तक ऐसे लोग हैं जिन्हें भ्रांति के बारे में पता है।
प्रश्नकर्ता : इस जगत् में मान्यताओं की वजह से ही ये सारी तकरारें हैं न? द्वंद्व खड़े हो गए हैं न?
दादाश्री : हाँ, सिर्फ बिलीफ ही बिगड़ी है। उसी से संसार खड़ा हो गया है। पूरा संसार बिलीफ बिगड़ने से ही खड़ा है। अब दो वस्तुओं को साथ में रखने से विशेष भाव उत्पन्न हुआ, उसके बाद बिलीफ बिगड़ी। जैसे कि जब चिड़िया चोंच मारती है न, उस समय अहंकार काम करता है। चोंच मारने वाला वह खुद ही है और वह चोंच किसे मारता है? वह ऐसा मानता है कि यह वस्तु मुझसे अलग है। अर्थात् उसकी बिलीफ बदली हुई है।
प्रश्नकर्ता : यह बिलीफ बनने से पहले क्या उसे बहुत सी प्रक्रियाओं में से गुजरना पड़ता है?
दादाश्री : हाँ! वह तो, प्रक्रिया होने के बाद ही बिलीफ बदलती है न! बिलीफ बंधती (बनती) है। प्रक्रिया तो सभी में अंदर रहस्यमय (गुप्त) रूप से रहती ही है। प्रक्रिया तो बीच में रहती ही है लेकिन क्या बंधता है, वह हमें जानना चाहिए।
अर्थात् मूल में अभी अपना बाकी कुछ भी नहीं बिगड़ा है सिर्फ