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(१.१) विभाव की वैज्ञानिक समझ
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कछ भी नहीं किया है। यदि किया होता तो वह जोखिमदार बन जाता। लेकिन वह अक्रिय स्वभाव वाला है।
विभाव के बाद में व्यतिरेक प्रश्नकर्ता : पहले विशेष भाव किए हैं, उसी से फिर ये क्रोधमान-माया-लोभ होते रहते हैं या अपने आप ही? यानी कि किस तरह से उत्पन्न होते हैं?
दादाश्री : आत्मा और पुद्गल, ये दोनों वस्तुएँ इकट्ठी हुई तभी से अपने आप ही ऐसे भाव उत्पन्न होते रहते हैं, क्रोध-मान-माया-लोभ होते रहते हैं और उसमें से फिर परंपरा शुरू हो जाती है। उसके बाद फिर बीज डालता है और वापस उसमें से फल आता है। उस फल में से वापस बीज डालता है और बीज में से वापस फल आता है, फिर ऐसा चलता ही रहता है।
क्रोध-मान-माया-लोभ आत्मा के व्यतिरेक गुण हैं, वे खुद के नहीं हैं। अन्य कोई है इसलिए ये उत्पन्न होते हैं। ये जड़ के भी नहीं हैं और चेतन के भी नहीं हैं, व्यतिरेक गुण हैं और ज्ञान, दर्शन, शक्ति , आनंद और अक्रियता, ये सभी आत्मा के अन्वय गुण हैं।
स्वाभाविक और विभाविक पुद्गल प्रश्नकर्ता : एक सत्संग में ऐसी बात हुई थी कि 'विशेष भाव से क्या हुआ?' तो वह यह कि 'मिकेनिकल चेतन बन गया, पुद्गल बन गया, पूरण-गलन (चार्ज होना, भरना - डिस्चार्ज होना, खाली होना) वाला। जब तक अपना वह स्वरूप है तब तक मुक्त नहीं हुआ जा सकता'। तो क्या इसमें मिकेनिकल चेतन, पुद्गल और पूरण-गलन, ये तीनों चीजें विशेष भाव के बाद में उत्पन्न हुई हैं ?
दादाश्री : तीनों एक ही हैं। सभी मिकेनिकल है। पुद्गल का अर्थ ही मिकेनिकल है। मिकेनिकल का अर्थ क्या है? जो अपने आप ही चलता रहे, चंचल ही रहे, उसे कहते हैं मिकेनिकल। निरंतर चंचल रहे, उसे कहते हैं पुद्गल।