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विभाव का और अधिक विश्लेषण ७४ ज्ञान के बाद कषाय अनात्मा के १०९ जंग ही है अहंकार भोगने की मात्र मान्यता है ७८
[९] स्वभाव और विभाव के
। [७] छः तत्त्वों के समसरण से
स्वरूप विभाव
जगत् चलता है स्वभाव से ही १११ समसरण मार्ग में...
८० नहीं है कर्तापन, स्वभाव में ११३ विधर्मी हुए हैं दो ही
८० स्वभाव, सत्ता और परिणाम ११५ छः द्रव्य, नहीं हैं कम्पाउन्ड के... ८१ स्वभाव कर्म का कर्ता... ११५ पुद्गल खुद ही विशेष परिणाम है ८२ डेवेलप होने वाला कौन है? ११७ ज्ञानी नज़रों से देखकर कहते हैं... ८३ विशेष परिणाम में भी अनंत शक्ति ११८ फिर कर्म बंधन होते समय छः तत्त्व...८४ प्रत्येक द्रव्य, निज द्रव्याधीन ११८ नहीं कोई किसी के विरुद्ध ८५ भावना में से वासना... १२० अक्रम ज्ञान, वह है चेतन का ८६ स्वभाव से विकारी नहीं है पुद्गल १२१ विभाव अनादि से हैं
अंत में आना है स्वभाव में १२२ नहीं है दोष इसमें किसी का
सपोज़ से मिलता है यों जवाब १२३ नियति का स्थान
शुक्लध्यान भी है विभाव १२३ विभाव, अधिक विस्तारपूर्वक ९०
स्वभाव का मरण ही भावमरण है १२४ नहीं है कर्ता कोई जगत् में ९५ भगवान की उपस्थिति से उत्पन्न... ९६
[१०] विभाव में चेतन कौन?
पुद्गल कौन? [८] क्रोध-मान से 'मैं', माया
'आप' चेतन, 'चंदू' पुद्गल १२६ लोभ से 'मेरा' _ 'अहम् चंदू', वह विशेष भाव १२७ 'मैं' बढ़ा आगे...
परिणामों की परंपरा... ९८
१२९ कषाय, कर्म कॉज़ और अंत:करण.. ९९ स्वभाव में रहकर होता है विभाव १३० गाढ़ विभाव, अव्यवहार राशि में १०२ नींव में सर्वत्र संयोग ही हैं। व्यवस्थित और पुनर्जन्म १०३ 'मैं' को करना है शुद्ध... १३२ विभाव, वह अहंकार है १०४ भाव भी परसत्ता ।
१३२ इनमें जो अलग रहा वह 'ज्ञानी' १०६ क्रोध, ज्ञान के बाद... कारण, कर्ता बनने का १०९ ज्ञानी की गर्जना, जागृत करे... १३४
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