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[३] अवस्था के उदय व अस्त [४] अवस्थाओं को देखने वाला 'खुद' पर्याय की परिभाषा २३६ उलझन मात्र रोंग बिलीफ से है २५६
२५८
अवस्था अनित्य, वस्तु नित्य कर्मरज चिपकते हैं भ्रांतिरस से २३६
तत्त्व दृष्टि, अवस्था दृष्टि
२५९ वस्तु अविनाशी और अवस्थाएँ... २३८ जगत् गड़बड़ घोटाला २६१ फर्क, पंच महाभूत और छः सना... २४० कथित केवलज्ञान ।
२६२ ऑक्सीजन नहीं है मूल तत्त्व २४१ अंत में अवस्थाओं का अंत २६४
भाषा भगवान की है न्यारी रे २६४ अहंकार में हैं चार तत्त्व... २४२
स्थिर वस्तु को देखते ही स्थिर । इम्बैलेन्स पाँचों का मनुष्यों में २४४ 'स्व' में स्वस्थ, अवस्था में.... उसमें तो हैं असंख्य जीव २४५ 'आपका' मुकाम किसमें?
२६८
पलक का झपकना भी अवस्था २७० रूपांतरित करता है काल
क्या अहम् विनाशी है? २७० ये संयोग-वियोग, ये हैं पर्याय २४७ बदलती हैं अवस्थाएँ पल-पल २७१ उत्पाद, व्यय, ध्रुव
२४८ हमने चखी हैं दुनिया भर की... २७३ गीता की यथार्थ समझ २५० अवस्था में चिपक जाता है चित्त... २७४ वे हैं रूपक...
१. आहुति, प्रत्येक अवस्था की
सर्व अवस्थाओं में नि:शंक... २७७ नियम, हानि-वृद्धि का २५३ निकाल लेना काम रे
२७८
२६५ २६७
२७५
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