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निरंतर अंतरदाह चलता ही रहता है। अवस्थाओं का तो निरंतर समसरण होता ही रहता है, उसमें मुकाम करने वाले को सुःख-शांति कहाँ से? पिछली गुनहगारी के फल के रूप में आज ये अवस्थाएँ मिलती हैं !
हे जीव! अवस्था की भक्ति छोड़कर 'स्व' की भक्ति में डूब !
आँखों का झपकना भी अवस्था है, और फिर वह ऑटोमैटिक हो जाता है ! अगर खुद करना हो तो क्या उसकी रिदम या काउन्ट का ठिकाना रहेगा?
इन्सिडेन्ट में अवस्था का समावेश हो जाता है, क्योंकि अवस्था एक संयोग है। लेकिन अवस्था में इन्सिडेन्ट का समावेश नहीं हो सकता।
जो-जो अवस्था अच्छी लगी, वैसा संयोग मिलेगा ही।
तत्त्वों के मिलने से 'अहम्' उत्पन्न होता है, क्या वह बदल सकता है? अहम् का नाश केवलज्ञान होने पर ही हो सकता है। बाकी, अवस्थाओं का नाश तो तुरंत ही हो जाता है।
कुदरती नियम के अनुसार कोई भी अवस्था ४८ मिनट से ज़्यादा नहीं टिकती।
दादाश्री कहते हैं कि 'हमने दुनिया की किसी भी अवस्था को चखना बाकी नहीं रखा'।
पसंदीदा में तन्मयाकार तो पसंद वाला बाँधता है और नापसंद में तन्मयाकार नहीं होता तो भी नापसंद का ही बंधन होता है।
यदि अवस्था में लक्ष (जागति) रहे तो वहाँ निशान पड़ता है और नहीं जाए तो अवस्था स्वाहा हो जाती है, जागृति यज्ञ में!
पूर्व जन्म में जिन पर्यायों का विशेष रूप से वेदन किया होगा, वे अभी अधिक आएँगे और घंटों-घंटों तक चित्त वहाँ पर चिपका रहेगा। उसे दखल कहा गया है। अवस्था को 'नहीं है मेरी' करेंगे तभी वह छूटेगी। ज्ञानी किसी भी अवस्था में एक क्षण के लिए भी एकाकार नहीं होते।
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