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अनंत गुण वृद्धि - सुबह ११-१२ बजे - लाख में से ६०-७० हज़ार लोग बढ़ते हैं। (बढ़-बढ़कर सत्तर-अस्सी हज़ार तक आता है)
जब हानि होती है तब :- (घटने का काल आएगा तब)
अनंत गुण हानि - दोपहर को ५-६ बजे - लाख में से ६०-७० हज़ार लोग कम हो जाते हैं। (ऑफिस से घर जाने लगते हैं इसलिए रास्ते खाली होने लगते हैं।)
__ असंख्यात गुण हानि - शाम को ६-७ बजे - लाख में से १२-१५ हज़ार लोग कम हो जाते हैं।
संख्यात गुण हानि - शाम को ७-८ बजे - लाख में से २-३ हज़ार लोग कम हो जाते हैं।
संख्यात भाग हानि - रात को ९-१० बजे - लाख में से ५००७०० लोग कम हो जाते हैं।
असंख्यात भाग हानि - रात को १०-११ बजे - लाख में से ५०१०० लोग कम हो जाते हैं।
अनंत भाग हानि - रात को १२-१ बजे - लाख में से १०-२० लोग कम हो जाते हैं।
वे कम होते जाते हैं और सुबह ३-४ बजे से वापस बढ़ते जाते हैं। उपरोक्त क्रमानुसार पूरी साइकल रिपीट होती रहती है। (लोगों की संख्या तो हमने यहाँ पर सिर्फ उदाहरण को समझने के लिए दी है।)
आत्मा को 'खुद को कुछ भी नहीं करना होता। उसके धर्म बदलते रहते हैं। उसके अंदर सबकुछ झलकता है। उससे उसे क्या बोझ? दर्पण के सामने कोई नखरे करे तो उसमें नुकसान किसे है ? ।
__ [४] अवस्था को देखने वाला खुद'
वास्तव में कोई अवस्था 'खुद को' उलझाती ही नहीं है। अवस्था को स्वभाव मनवाने वाली 'खुद की' मान्यता की वजह से ही उलझनें हैं। स्वभाव अर्थात् तत्त्व। अवस्था को 'मैं ही हूँ', ऐसा मानता है इसलिए
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