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स्थूल अवस्थाओं को, जैसे कि बचपन, जवानी, बुढ़ापा को अवस्था कहा जाता है, पर्याय नहीं कहा जाता।
मूल वस्तु के पर्याय नहीं होते, मूल वस्तु के गुणों के पर्याय होते हैं। ज्ञान-दर्शन व गुण नहीं बदलते, पर्याय बदलते हैं।
अभी 'आप' खुद पर्याय स्वरूपी हो। ('मैं चंदूभाई' मानता है इसलिए।)
मनुष्य मिश्र चेतन के भाग के रूप में नहीं है। यदि ऐसा होता तो वह मूल रूप में ही होता लेकिन मनुष्य पर्याय के रूप में है। 'उसकी' ('मैं' की) मान्यता रोंग है कि 'मैं चंदू हूँ', जब तक उसका ज्ञान रोंग है, उसका वर्तन रोंग है, तब तक वह पर्याय रूपी है। यदि सबकुछ राइट हो जाए तो मूल स्वरूप ही कहलाएगा। जैसे चंद्र के फेज़िज़ खत्म होने पर पूनम हो जाती है, उसी प्रकार आत्मा के फेज़िज़ अर्थात् पर्याय खत्म होने पर केवलज्ञान हो जाता है।
तत्त्व से शून्य और पर्याय से पूर्ण कहते हैं, उसका क्या मतलब है?
पौद्गलिक पर्याय जो कि ज्ञेय में ज्ञेयाकार के रूप में परिणामित होते हैं, उससे पूर्ण हैं और तत्त्व से शून्य हैं, ऐसा कहा गया है।
वास्तव में तो व्यवहार आत्मा यानी रिलेटिव आत्मा पर्याय से परिपूर्ण है और द्रव्य से शून्य है और मूल दरअसल आत्मा तो शून्य भी नहीं है और पूर्ण भी नहीं है।
___ आत्मा के पर्याय अर्थात् यहाँ व्यवहार आत्मा के पर्यायों की बात है। रियल आत्मा में भी पर्याय हैं लेकिन वे शुद्ध होते हैं जबकि व्यवहार आत्मा के पर्याय अशुद्ध हैं।
पौद्गलिक पर्यायों और आत्मा के पर्यायों में फर्क है।
पौद्गलिक पर्याय जड़ के और आत्मा के चेतन पर्याय हैं। पौद्गलिक पर्याय ज्ञेय के रूप में हैं और आत्मा के पर्याय ज्ञाता के रूप में हैं।
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