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अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010
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हमें विचार करना है कि संयमी कौन होते हैं। और असंयमी कौन ? मुनि महाराज पांच महाव्रत, पांच समिति, पांच इन्द्रिय विजय षडावश्यक एवं सात अन्य मूलगुणों का पालन करते हैं अतः वे संयमी होते हैं। महाव्रतों के पालन से सकल संयम होता है और अणुव्रतों के पालन से देश संयम होता है। मुनि त्रस व स्थावर दोनों प्रकार के जीवों की हिंसा के त्यागी होने से अहिंसा महाव्रत एवं संपूर्ण परिग्रह का त्याग करने से अपरिग्रह महाव्रत के धारक होते हैं। यदि मुनिराज मोबाइल, फोन, लैपटॉप आदि वस्तुएँ रखते हैं और उनका तथा कूलर पंखा आदि का प्रयोग करते हैं तो वे असयंमी हो जाते हैं। मोबाईल, फोन, लैपटॉप, कूलर आदि उपकरण नहीं, परिग्रह है। उपकरण संयम की साधना में आत्मा का उपकार करने वाले केवल तीन ही होते हैं। पीछी, कमंडलु और शास्त्र। भगवती आराधना में मुनि के उपकरणों के बारे में लिखा है
"संजम साधय मेत्ते उवधिं मोत्तूणं सेसयं उवधि।
पज्जहदि विसुद्ध लेस्सो साधू मुत्तिं गवेसतों॥१६४॥" भगवती आराधना।। मुक्ति को खोजने वाला विशुद्ध लेश्या से युक्त साधु संयम के साधन मात्र परिग्रह को छोड़कर शेष परिग्रह को प्रकर्ष अर्थात् मन वचन काय से त्याग देता है।
आचार्य कुंदकुंद ने असंयमी अथवा संयम को दूषित करने वाली निरंकुश चर्या अपनाने वाले मुनियों की वंदना नहीं करने का निर्देश इसलिए दिया है कि हमारे द्वारा ऐसे मुनियों की वंदना करने से उन मुनियों को उस शिथिलाचरण में प्रोत्साहन मिलता है और ऐसे धीरे- धीरे उनका शिथिलाचरण परंपरा बन जाता है। ऐसे ही दिगम्बर संघ में से पृथक् होकर शिथिलाचार का आश्रय लेने वाले साधुओं ने श्वेताम्बर संघ की स्थापना कर दी और उसके शिथिलाचार के समर्थन में आगम की भी रचना कर दी। कालांतर में यापनीय संघ भट्टारक संप्रदाय आदि भी शिथिलाचारी साधुओं की ही उपज हैं। आचार्य कुंदकुंद के समय में भी शिथिलाचारी मुनि थे और उन्होंने अपने पाहुड़ ग्रंथों में ऐसे कुमुनियों की भरपूर भर्त्सना की है।
कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि शास्त्र के स्थान पर लेपटॉप का उपयोग किए जाने में क्या हानि है, बल्कि लाभ है क्योंकि शास्त्र सुरक्षित रहते हैं और तुरन्त संदर्भ प्राप्त हो जाता है। लगता है ऐसा तर्क देने वालों को आगम का ज्ञान नहीं है। मुनिराज उपेदश दे सकते हैं किंतु स्वयं लेपटॉप रखकर उसका उपयोग नहीं कर सकते। उसके उपयोग में अग्निकायिक स्थावर जीवों की हिंसा होती हैं जिसके मुनिराज पूर्णत: त्यागी हैं। लेपटॉप तथा मोबाइल का संचालन आरंभ है। दूसरा वह कीमती वस्तु परिग्रह है जिसके मुनिराज त्यागी हैं। आ. कुंदकुंद ने सूत्र प्राभृत की गाथा 17 में लिखा है मुनि महाराज बाल के अग्रभाग की अणी के बराबर भी परिग्रह का ग्रहण नहीं करते हैं। अत: उन्हें योग्य श्रावक के द्वारा दिये हुए अन्न का हस्त रूप पात्र में भोजन करना चाहिए और वह भी एक ही स्थान पर। आगे गाथा 18 में कहा है यदि नग्नमुद्रा के धारक तिलतुषमात्र परिग्रह भी अपने हाथों में ग्रहण करते हैं तो निगोद जाते हैं।