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जैन न्याय एवं दर्शन: एक अध्ययन
_ -डॉ. ज्योतिबाबू जैन भारतीय परंपरा में चिंतन को विशेष महत्व दिया गया है, जिसमें बौद्धिक व्यवहारिक एवं धार्मिक चिंतन के साथ-साथ दार्शनिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर विचार किया गया
और जिसमें प्रत्येक युग की परिस्थिति वातावरण आदिपर प्रकाश डाला गया है। दर्शन के क्षेत्र में कोई सीमा नहीं रही इसमें मानव बुद्धि द्वारा जितना भी चिंतन हुआ है वह विविध मूल्यों के लिए हुए अत्यन्त वैज्ञानिक तथा जीवन और जगत के गंभीर रहस्य को प्रतिपादित करने वाला है। इसमें यथार्थ के साथ-साथ आदर्श का निरूपण भी हुआ है और सामान्य दृष्टि से जब उसके मूल्य पर विचार करते हैं तो दर्शन की दृष्टि से वस्तु स्वरूप के चिंतन तथ्य निरूपण एवं प्रमाण और नय की विवक्षा भी की गयी है।
भारतीय दर्शन आत्मधर्म प्रधान दर्शन है। इसमें इनके विचारकों ने आत्म तत्त्व के गवेषणा में अपनी शक्ति लगाई है। जिसकी धुरी पर संसार चक्र घूमता है।
इसके दृष्टिकोण में सभी प्रकार के विचारों का मंथन है, यह जहां आत्मतत्त्व की ओर ले जाता है वहीं व्यक्ति को 'आत्मा है' इसी को केन्द्रित करके दार्शनिक इसकी उत्पत्ति स्थिति तथा उससे मुक्ति की ओर गतिशील हो जाता है। वह भूत में समाहित होकर पुनर्जन्म के कथन में भी अलग- अलग दृष्टिकोण को खोल लेता है- आत्मा है, आत्मा जीवन है, आत्मा ज्ञान है, आत्मा परम ज्ञान है, परमात्मा है, इत्यादि एक ही चिंतन जीवन के लिए नये-नये आदर्श उपस्थित करा जाता है यही दर्शन का एक पक्ष है आत्मा संबन्धी दृष्टिकोण के विविध रूपों को मानव मस्तिष्क में स्थान बना लेता है जिसे दर्शन की दृष्टि से न्याय तर्क या बुद्धि का एक ही वस्तु पर विशेष चिंतन कहा जाता हैं। दर्शन शब्द और उसकी व्यापकता
दर्शन-चिंतन का नाम है जिसमें मानव विचारों के सभी पक्ष रहते हैं। दर्शन दृश् ध तु से बना ऐसा जब कथन करते हैं तब दृश का अर्थ देखना अवलोकन करना या वस्तु का निरीक्षण करना होता है जिसे न्याय की दृष्टि से दर्शन नहीं कह सकते।
दार्शनिकों ने दर्शन को जहाँ "दृश्यतेऽनेन इति दर्शनम्' अर्थात् जिसके द्वारा देखा जाता है, वहीं पर दर्शन के लिए चिंतन का विषय भी कहा है।
दर्शन आत्म दृष्टि का नाम है जिसे अंतर दृष्टि भी कहते हैं। जो सूक्ष्म दृष्टि प्रज्ञा चक्षु ज्ञान चक्षु और दिव्य दृष्टि भी कही जाती है। डॉ. महेन्द्र कुमार जैन ने जैन दर्शन के विषय प्रवेश में दर्शन के यथार्थता पर प्रकाश डालते हुए कथन किया है कि दर्शन का मोटा और स्पष्ट अर्थ है "साक्षात्कार करना प्रत्यक्षज्ञान से किसी वस्तु का निर्णय करना" जैन दर्शन के प्रसिद्ध विचारक एवं चिंतनशील महामना डॉ. दरबारी लाल कोठिया ने दर्शन को चिंतन