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अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 में माण्डू के निकट नालछा (नलगच्छपुर) के निवासी थे।
'भरतेश्वराभ्युदय' उत्कृष्ट कोटि का चम्पू काव्य है। ४. पुरुदेव चम्पू
'पुरुदेव चम्पू' संस्कृत साहित्य के विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह उत्कृष्ट चम्पू काव्य है। पद्य रचना में यह काव्य महाकवि भारवि और माघ तथा गद्य में सुबन्ध
और बाण भट्ट की कृतियों से तुलनीय है। 'पुरुदेव चम्पू' में दश स्तबक हैं। स्तबक शब्द संस्कृत की स्तु धातु से वुन् प्रत्यय या स्था धातु से अबक् प्रत्यय जोड़कर बनता है जिसका अर्थ है गुच्छा या झुण्ड। इस ग्रंथ में प्रारंभ के तीन स्तबकों में पुरुदेव भगवान् आदिनाथ (ऋषभदेव) के पूर्व-भवों का वर्णन किया गया है। शेष स्तबकों में भगवान आदिनाथ और उनके पुत्र भरत तथा बाहुबली का चरित्र मनोरम काव्य शैली में किया गया है। __ कथावस्तु की दृष्टि से यह काव्य विशेष महत्वपूर्ण है। पुरुदेव की जीवन अत्यन्त रोचक एवं उपदेशवाद है। पुरुदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती तथा बाहुबली का जीवन भारतीय सांस्कृतिक इतिहास का उज्जवल निदर्शन है। इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। जैसा कि मार्कण्डेय', कूर्म, अग्नि, वायु, ब्रह्माण्ड, वराह, लिंग, विष्णु, तथा स्कन्द'5- इन नौ पुराणों में उल्लिखित है। उदाहरणार्थ
अग्रीधसूनो भेस्तु ऋषभोऽभूत सूतो द्विजः। ऋषभाद् भरतो जज्ञे, वीरः पुत्रशताद्वरः ॥३९॥ हिवाह्वः दक्षिण वर्ष भरताय पिता ददौ। तस्मात्त् भारतं वर्ष तस्य नाम्ना महात्मनः॥४१॥ नाभेः पुत्रश्च ऋषभः ऋषभाद् भरतोऽभवत्।
तस्य नाम्ना त्विदं वर्ष भारतश्चेति कीर्त्यते॥५७॥७ पुरुदेव चम्पू का वैशिष्ट्यः
बाहुबली की तपस्या भारतीय मूर्तिकला के लिए अदम्य प्ररेणा स्रोत रही है। अतः हम कह सकते हैं कि पुरुदेव चम्पू ने केवल काव्य की दृष्टि से नहीं, प्रत्युत भारतीय सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। अपनी कविता के विषय में स्वयं अर्हद्दास ने कहा है कि- वह कोमल-चारु-शब्द-निचय से संपन्न है। भगवान् की भक्ति रूपी बीज से, इस कविता-लता का उद्भव हुआ है। विविध वृत्त इसके पल्लव एवं अनेक अलंकार इसके पुष्प-गुच्छ हैं। ऋषभ-कल्पवृक्ष से लिपटी यह कविता-लता व्यंग्य की श्री से सुशोभित है:
जातेयं कवितालता भगवतो भक्त्याख्यबीजेन मे, कोमल चारु शब्द निश्चयैः पद्यैः प्रकामोज्जवला। वृत्तैः पल्लविता ततः कुसमितालड.कार-विच्छित्तिभः सम्प्राप्ता वृषभेश- कल्पसुतरूं व्यंग्यश्रिया वर्धते॥