Book Title: Anekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 384
________________ अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 वीर सेवा मंदिर महावीर जयन्ती के अवसर पर अनुमोदित प्रस्ताव पर पं. जुगलकिशोर मुख्तार ने 21 अप्रैल सन् 1929 को समंतभद्राश्रम की स्थापना की। इस आश्रम से अनेकान्त मासिक शोध पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया / लगभग एक वर्ष बाद इस संस्था का नाम बदल कर वीर सेवा मंदिर कर दिया गया। वहाँ से शोध संस्थान के रूप में जैन साहित्य की विभिन्न शोध प्रवृत्तियों का अनुसंधान और प्रकाशन होने लगा। जैन साहित्य और इतिहास के सम्बन्धों में अन्वेषण करने वाली यह एक प्रमुख संस्था है। 17 जुलाई सन् 1954 में वीर सेवा मन्दिर वर्तमान भवन का शिलान्यास दरियागंज, दिल्ली में सम्पन्न हुआ। 12 जुलाई सन् 1957 को इसका लोकार्पण किया गया, संस्था का समृद्ध पुस्तकालय एवं सर्वश्रेष्ठ ग्रंथों का भंडार विद्वानों के अनुसंधान हेतु 28 जुलाई 1961 को समाज को समर्पित किया गया। इस संस्था के स्थापना काल में निम्न सदस्यों का विशेष योगदान रहा जिनमें पं. जुगलकिशोर मुख्तार, बाबू छोटेलाल जैन, नंदलाल जैन सरावगी, साहू शान्ति प्रसाद जैन, सेठ मिश्री लाल जैन, राय बहादुर दयाचंद जैन, राय साहब उलफतराय जैन, लाला राजकिशन जैन, श्री पन्नालाल जैन, श्री रघुवीर दयाल जैन, श्री जुगलकिशोर जैन कागजी, श्री प्रेमचन्द्र जैन जैना वॉच, राजवैद पं. महावीर प्रसाद जैन, श्री मक्खनलाल जैन 'ठेकेदार', श्रीमती जयवंती देवी जैन, श्री छादामी लाल जैन आदि प्रमुख हैं। वर्तमान में ग्रंथालय में प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, अंग्रेजी एवं उर्दू आदि भारतीय भाषाओं की सात हजार से अधिक प्राचीन एवं नवीन ग्रंथों का संग्रह है। इस पुस्तकालय में 167 हस्तलिखित ग्रन्थ भी हैं जिनमें ज्योतिष, आयुर्वेद व इतर धर्म शास्त्रों के विषय गर्भित हैं। इसके अतिरिक्त पुस्तकालय में ताडपत्रों पर काटों से उकेरे गए वसन्ततिलक, राजा विज्जल कथा एवं धन्यकुमार चरित आदि हस्तलिखित ग्रन्थ भी सुरक्षित हैं। इस पुस्तकालय में दिगम्बर ग्रंथों के अतिरिक्त श्वेताम्बर जैन आगम ग्रंथ, वैदिक एवं बौद्ध साहित्य के अनेक महत्त्वपूर्ण मुद्रित ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं। संस्था के द्वारा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन समय-समय पर किया जाता रहा है। जिनमें मुख्यत: पुरातन जैन वाक्य सूची, जैन लक्षणावली व अंग्रेजी भाषा में बाबू छोटेलाल जैन द्वारा रचित जैन बिबिलियोग्राफी (दो भाग) है। संस्था के द्वारा 50 से भी अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अनेकान्त शोध पत्रिका का निरन्तर प्रकाशन किया जा रहा है। संस्था की साहित्यिक गतिविधियों को मूर्त रूप प्रदान करने में पं. पद्मचन्द्र शास्त्री का विशेष योगदान रहा है। समय-समय पर अनेक आचार्यों और मुनि महाराजों का आशीर्वाद एवं प्रेरणा संस्था को प्राप्त होता रहा है। यह संस्था और ग्रंथागार जनहित के साथ-साथ शोधार्थियों को भी उपयोगी सिद्ध होते रहे हैं। वीर सेवा मन्दिर पुस्तकालय का अनेक भारतीय और विदेशी अनुसंधानकर्ता अपने अनुसंधान हेतु लाभ लेने आते रहते हैं। यहाँ आने वाले शोधार्थियों के लिए संस्था में जाति समुदाय का भेदभाव किए बिना ठहरने और पढ़ने की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है। जैन साहित्य और इतिहास के सम्बन्धों में अन्वेषण करने वाली यह एक प्रमुख संस्था है।

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