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अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010
चेष्ठा करना। मनसंयम-मन में दुर्भाव नहीं होना।
इंदियसंजमो पाणिसंजमो य। उहयोत्थि आद-आणंदो जदा सडजीवणिकाय- संरक्खणं कुणेदि जणो साहगो। मणसंजमो वयसंजमो कायसंजमो सम्मदंसणं विणा ण संजमो आदिणो संवरं कुणति कम्माण आगद-पवाहं संवरेंति।
आद-संमुही तेण कारणेण होदि। इन्द्रियसंयम और प्राणीसयंम ये दोनों से ही आत्म आनंद तब होता है जब वह षट्काय जीव निकाय का साधकजन संरक्षण करता है। मनसंयम, वचनसंयम, उपकरणसंयम और प्रेक्षासंयम आदि संवर करते हैं। कर्मों के आगम प्रवाह को रोकते हैं। उसी से आत्मसम्मुखी होता है।
-पिऊ कुंज, अरविन्द नगर,
उदयपुर (राजस्थान) शेष अगले अंक में....
गुणों में प्रतिस्पर्धा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन सुबह प्रतिदिन घूमने जाया करते थे। एक दिन वे घूमकर लौट रहे थे कि रास्ते में एक मजदूर ने झुककर उनको नमस्कार किया तो अब्राहम लिंकन ने उसको उससे भी ज्यादा झुककर नमस्कार किया। साथ में चलने वाले व्यक्ति ने पूँछा- आपने ऐसा क्यों किया ? आप तो राष्ट्रपति हैं। तो उनका उत्तर गौर करने योग्य है, वे बोले- मैं ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई मुझसे भी ज्यादा विनयशील हो जाये। ऐसे थे अब्राहम लिंकन।