Book Title: Anekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 377
________________ अनेकान्त 63/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2010 करने से वे ही अप्रमत संयत अपूर्वकरण परिणामों में प्रवृति स्वरूप अष्टम गुणस्थानवर्ती होते हैं। 42 89 सातवें गुणस्थान में स्थित ध्यानी दो प्रकार के मार्गो का अवलम्बन लेता है क्षपक श्रेणी और उपशम-श्रेणी । कर्मों को नष्ट करते हुए क्षपक श्रेणी एवं कर्मों के उपशम से उपशम श्रेणी होती है। उपशम श्रेणी से ग्यारहवें गुणस्थान तक पहुँचकर कर्मोदय होने पर नीचे के स्थानों में आ जाते है और क्षपक श्रेणी से कर्मों का क्षय कर बारहवें गुणस्थान के अंत में केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। अपूर्वकरण गुणस्थान और ध्यान:- अपूर्वकरण गुणस्थान में प्रथम शुक्लध्यान दोनों श्रेणी वाले जीवों के होता है। वह शुक्ल ध्यान तीन प्रकार है: 1 पृथक्त्व 2 सवितर्क 3 सवीचार 43 पृथक्त्व ध्यान:- ध्यान में स्थित मुनि जिस ध्यान में द्रव्य की पर्यायों एवं गुणों को पृथक-पृथक जानते हैं वह ध्यान पृथक्त्व ध्यान है। " सवितर्क ध्यान :- वितर्क से तात्पर्य श्रुतज्ञान है अर्थात् जो ध्यान सदा काल श्रुत ज्ञान के साथ रहे वह सवितर्क ध्यान है। सवीचार ध्यान :- योग पदार्थ और शब्दों का बदलना वीचार कहलाता है। वीचार सहित ध्यान सवीचार है जिस ध्यान में चिंतन किये हुये पदार्थों व उनको करने वाले शब्दों का चितवन मन से, वचन से, काय से या क्रम बदल कर अर्थात् कभी काय से या कभी मन से या कभी वचन से चिंतवन किया जाता है अर्थात् जिसमें योग बदलते ही पदार्थ और उनके वाचक शब्द भी बदलते रहते हों वह सवीचार ध्यान है। 45 यह ध्यान कर्म वृक्ष को काटने के लिये बिना धार वाली कुल्हाड़ी के समान है जो देर से कर्मों का नाश करता है। इस गुणस्थान में कर्मों का क्षय या उपशम होने पर जो अपूर्व परिणाम होते हैं वैसे अपूर्व परिणाम पूर्व में कभी नहीं हुए इसलिए यह गुणस्थान अपूर्वकरण है।" ९ अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में परिणामों की स्थिति:- अपूर्वकरण के समान इस गुणस्थान में उत्तरोत्तर जो परिणामों की शुद्धता होती जाती है वह शुद्धता वृद्धि को प्राप्त होती है कम नहीं होती इसलिये यह गुणस्थान अनिवृत्ति करण है। जिसमें परिणामों की स्थिति बढ़ती रहे एवं निवृत्त न हो और बढ़ती ही चली जाय वह अनिवृत्तिकरण है। 7 इस गुणस्थान में औपशमिक भाव और क्षायिक भाव दोनों श्रेणी के अनुसार होते हैं। उपशम श्रेणी वाले के उपशम एवं क्षपक श्रेणी वाले के क्षायिक भाव होते हैं। अनिवृत्तिकरण में ध्यान की अत्यन्त निर्मलता के साथ पहला पृथक्त्व वितर्क वीचार नाम का शुक्लध्यान होता है। इस गुणस्थान की विशेषता है कि इस गुणस्थान में एक समय में जितने जीव स्थित होते हैं उन सभी के परिणाम समान होंगे एवं वे परिणाम निवृत्ति रूप नहीं होते। 48

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