Book Title: Anekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 379
________________ अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 91 इस गुणस्थान की स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से जितने वर्ष की आयु में केवलज्ञान हुआ उतने वर्ष कम एक करोड़ पूर्व। १४ अयोग केवली गुणस्थान में ध्यान की स्थिति:- जहाँ योगों का अभाव हो गया है वह अयोग है और केवलज्ञान होने से केवली है अर्थात् जो योग रहित होकर भी केवली है वह अयोग केवली गुणस्थान है। जिस योगी के कर्मों के आने के द्वारा रूप आस्रव का सर्वथा अभाव हो गया है तथा जो सत्त्व और उदयरूप अवस्था को प्राप्त कर कर्मों की रज से सर्वथा मुक्त होने के सम्मुख है। उस योग रहित केवली को अयोग केवली कहते हैं। इस गुणस्थान में समस्त योगिक क्रियाओं का अभाव हो जाने से चौथा व्युपरत क्रिया निवृत्ति नाम का शुक्ल ध्यान होता है एवं क्षायिक और शुद्ध भाव होने से भगवान निरंजन और वीतरागी होते हैं। जिस प्रकार का ध्यान सयोगी गुणस्थान में होता है वैसा ध्यान न होकर उपचार से ध्यान माना जाता है कर्मों का नाश बिना ध्यान से नहीं होता इस अपेक्षा से उपचार से ध्यान माना है क्योंकि चौदहवें गुणस्थान में अघातिया कर्मों का नाश होता है। ध्यान की अवस्था, ध्याता की स्थिति, ध्यान योग्य ध्येय पदार्थों के विकल्प से सभी मन सहित जीवों के होते हैं लेकिन सयोगी एवं अयोगी अवस्था में मन का अभाव होता है इस अपेक्षा से तेरह चौदह गुणस्थान में ध्यान नहीं होता। 59 इस प्रकार ध्यानों का विभिन्न दृष्टियों से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि गुणस्थानों का ध्यान से अविनाभाव संबंध है। धर्म ध्यान के बिना अध्यात्म विकास के सोपान गुणस्थानों पर आरोहण संभव नहीं होता और शुक्ल ध्यान के बिना श्रेणी आरोहण कर कर्म क्षय करके अरिहंत अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकता और अंतिम शुक्ल ध्यान के अभाव में मोक्ष अवस्था प्राप्ति नहीं हो सकती। इस प्रकार आचार्य देवसेन एवं विभिन्न दृष्टियों के अवलोकन से निष्कर्ष निकलता है कि ध्यान के बिना गुणस्थान नहीं और गुणस्थान के बिना ध्यान नहीं। संदर्भ : 1. आलापपद्धति सू 92 2. वही 93 3. न्यायदीपिका 3/78 व्यतिकीर्णवस्तुव्यावृत्तिहेतुर्लक्षणम्। 4. पंचाध्यायी गाथा 478 धवला पु. 1 गाथा 114/161 ध, 1-1-8 गा. 114/161 6. भाव संग्रह गा. 8-11 7. वही गा. 12,13 8. वही गा. 16 9. भाव संग्रह- 166-168 10. वही 169-171

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