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अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 पच्चीकारी का उदाहरण है। केन्द्रीय रथ विशाल स्कन्ध के रूप में अमलिका, केन्द्रिका, छोटी अमलिका और इसके बाद में कलशों द्वारा प्रदर्शित है। लघु उरूश्रृंग यहाँ नक्काशीदार रथिका की मूल मंजरी के आधानुरूप बने प्रतीत होते हैं- ऐसा यहाँ देखने पर स्वतः ही ज्ञात होता है। इनमें इन अंगों पर उरूश्रृंग बने है, जो कणों से छोटे है। सभी श्रृंग प्रदर्शित हैं, जो समानान्तर रूप में दो पंक्तियों में बेजोड़ पच्चीकारी से निर्मित हैं। जंघाओं की क्रियान्विति आकृति शिल्प से नियोजित है, जबकि भद्रों का निर्माण जैन देव मूर्तियों से दिखाई देता है। भद्रों की शिल्पाकृतियों के मुकुट, तोरंग तथा कीर्तिमुखों से निर्मित है। इनमें जैनदेव, यक्ष-यक्षिणी व विद्या देवियों की मूर्तियाँ बनी है। प्रतिरथ के कर्णों पर दिक्पाल बने हुए हैं। मंदिर में कुछ स्थानों पर कच्छपाघात की शिल्पाकृतियाँ द्विआयामी कतारों में दिखाई देती हैं जो जंघाओं और स्तम्भ शकों को दैविक सजावट से द्वार की ओर ले जाती हुई हैं। इस प्रकार प्राचीन भारतीय कला स्थापत्य की यह धरोहर आज भी सांस्कृतिक प्रतिष्ठा संजोये हुए है।
जैन परंपरानुसार यह मंदिर पूरा ही परकोटे से रक्षित है। इसके परिसर में 2000 भक्तों के एक साथ बैठने की व्यवस्था है। इसमें एक विशाल कलायुक्त वेदी है। जिस पर जैन मुनि बैठकर प्रवचन करते हैं। इसी के निकट बरामदे में उत्तर की ओर सेठों की चाँदी की एक सुन्दर वेदी बनी हुई है, जो कलात्मक दृष्टि से सुन्दरता तथा धार्मिक भाव लिये हुए है। इसका निर्माण यहाँ की प्रतिष्ठित फर्म सेठ बिनोदीराम बालचन्द के समाजसेवी सेठ नेमीचन्द व सेठानी लक्ष्मीदेवी ने करवाया था। उन्होने इस रजत वेदिका पर जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ स्थापित कर भव्य समारोह किया था। प्राचीनकाल में इस मंदिर की अत्यधिक ख्याति थी। अनेक श्रावक और जैन मुनि यहाँ आते थे। इस मंदिर में कई जैन मूर्तियां स्थापित हैं, जो जैनधर्म के मूलसंघ, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगण के भट्टारक सकलकीर्ति व उनके शिष्यों द्वारा प्रतिष्ठित है। इन मूर्तियों के नीचे दुर्लभ लेख उत्कीर्ण हैं, जो बलात्कारगण की ईडरशाखा के है।' इन लेखों को स्वयं लेखक ने भी बड़े परिश्रम से लेंस की सहायता से पढ़ा है। इनका विवरण इस प्रकार है।2
1. संवत् 1490 वर्षे माघवदी 12 गुरौ भट्टारक सकलकीर्ति हूमड़ दोशी मेधा श्रेष्ठी अर्चति।
2. संवत् 1492 वर्षे वैशाख वदी सोमे श्री मूलसघे भट्टारक श्री पद्मनंदि देवास्तत्पट्टे, भट्टारक श्री सकलकीर्ति हूमड़ जातीय......
3. संवत् 1504 वर्षे फागुन सुदी 11 श्री मूलसंघे भट्टारक श्री सकलकीर्ति देवास्तत्पट्टे, भट्टारक श्री भुवनकीर्ति देवा हुमड़ जातीय श्रेष्ठि खेता भार्या लाख तयो पुत्रा... ____4. संवत् 1535 पोषवदी 13 बुधे श्री मूलसंघे भट्टारक श्री सकलकीर्ति भट्टारक श्री भुवनकीर्ति, भट्टारक श्री ज्ञानभूषण गुरूपदेशात् हूमड़ श्रेष्ठि पद्माभार्या भाऊ सुत आसा भ. कडू सुत्कान्हा भा. कुंदेरी भ्रातधना भा. वहहनु एते चतुर्विंशतिका नित्य प्रणमंति।
5. यहाँ प्रतिष्ठित एक तीर्थकर पार्श्वनाथ मूर्ति पर संवत् 1620 वैशाखसुदी 9 बुध