Book Title: Anekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 349
________________ अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 61 __ अर्थात् जो सप्त व्यसन पूर्वक सूतक-पातक आदि के समय एवं रजस्वला अवस्था में (स्त्रियों द्वारा) दान दिया जाता है अथवा रजस्वला स्त्री से संस्पृष्ट वस्तु का दान दिया जाता है, उस दान के फल से दाता को कुभोग भूमि में जन्म लेना पड़ता है। दान के योग्य द्रव्यः दान का उत्कृष्ट फल प्राप्त करने के लिये द्रव्य न्याय एवं नीति से उपार्जित होना चाहिए। न्याय एवं नीति पूर्वक कमाये गये धन से कराये गये जिनबिंब पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें एवं विधि-विधान आदि समस्त अनुष्ठान सातिशय संपन्न होते हैं। जहाँ एक ओर ऐसे अनुष्ठानों से अतिशय पुण्य का आस्रव होता है, वहीं दूसरी ओर मोक्ष मार्ग भी प्रशस्त होता है। कवि संतलाल जी ने सिद्धचक्रविधान में श्रेष्ठ यजमान का लक्षण बतलाते हुए लिखा है कि नीत्याश्रित धनपति सुधी, शीलादि गुणखान। जिनपद अम्बुज भ्रमर मन, सो प्रशस्त यजमान। अर्थात् यजमान (आयोजनकर्ता) का धन नीति द्वारा अर्जित किया हुआ होना चाहिए। इसी संदर्भ में पंडित आशाधर जी ने लिखा है कि-"न्यायोपात्त धनो यजन्...चरेत्।।" अर्थात् धर्म पालन करने वाले श्रावक की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि वह अपना धन न्यायपूर्वक अर्जित करता हो। दान का फल द्रव्य की मात्रा पर नहीं अपितु उसकी शुद्धि पर निर्भर करता है। आहार दान एवं औषधि दान में दिया जाने वाला आहार एवं औषधियाँ प्रासुक एवं शुद्ध होनी चाहिए अहिंसक विधि से तैयार हों मर्यादित एवं भक्ष्य होनी चाहिए। दान के अयोग्य द्रव्य एवं सामग्री का वर्णन करते हुए आचार्य पद्मनंदी ने लिखा है कि-"गाय, सुवर्ण, पृथ्वी, रथ, स्त्री आदि का दान महान् फल देने वाले नहीं है क्योंकि वे निश्चय से पाप उत्पन्न करने वाले हैं। लेकिन दाता जिनालय के निमित्त से भूमि आदि का दान कर सकता है क्योंकि वह धर्म संस्कृति का कारण है। 34 दाता के गुणः दान का उत्कृष्ट फल प्राप्त करने के लिए दाता में सात विशेष गुण होने चाहिए। इनका वर्णन करते हुए आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण में लिखा है कि-"श्रद्धा, शक्ति, भक्ति, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा, त्याग ये दानपति अर्थात् दान देने वाले के सात गुण कहलाते हैं। श्रद्धा आस्तिक्य बुद्धि को कहते हैं। आस्तिक्य बुद्धि अर्थात् पात्र के प्रति श्रद्धा के न होने पर अनादर हो सकता है। दान देने में आलस्य नहीं करना शक्ति गुण है। पात्र के गुणों में आदर करना भक्ति है। दान देने आदि के क्रम का ज्ञान होना एवं पात्र-अपात्र की पहचान होना विज्ञान गुण है। दान देने की शक्ति को अलुब्धता कहते हैं। सहनशीलता होना क्षमा गुण है। उत्तम द्रव्य दान में देना त्याग है। जो दाता इन सात गुणों से सहित होकर एवं निदान आदि दोषों से रहित होकर पात्रों को दान देता है वह मोक्ष प्राप्त करने के लिए तत्पर होता है।''35 दान करते समय दाता के मन में प्रत्युपकार की इच्छा नहीं होनी चाहिए न ही किसी

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