________________
अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010
प्रकार का निदान बाँधना चाहिए। दान के योग्य पात्र एवं उनका दान के फल पर प्रभावः
दान के फल की प्राप्ति में पात्र गुणों का अतिशय महत्त्व है। जिसके द्वारा दान ग्रहण किया जाता है। शास्त्रों में उत्तम, मध्यम जघन्य के भेद से तीन प्रकार के पात्रों का उल्लेख प्राप्त होता है। सम्यग्दर्शन एवं व्रत-आचरण के द्वारा ही पात्र की पात्रता निर्धारित होती है। विभिन्न शास्त्रों में पात्रों का वर्णन करते हुए लिखा है कि-"जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक् तप की शुद्धि से पवित्र है तथा शत्रु और मित्रों पर माध्यस्थ भाव रखते हैं ऐसे साधु उत्तम पात्र कहलाते हैं। संयमासंयम अर्थात् अणुव्रतों को धारण करने वाले श्रावक मध्यम पात्र कहलाते हैं। अविरत सम्यग्दृष्टि जघन्य पात्र कहलाते हैं। जो स्थूल हिंसादि पापों से निवृत्त हैं परन्तु मिथ्यात्व से ग्रसित हैं वे कुपात्र हैं। जो मिथ्यादृष्टि होने के साथ-साथ हिंसादि पापों से भी निवृत्त नहीं है, वे अपात्र हैं।
सामान्यतः सभी आचार ग्रंथों में पात्रों के उक्त भेद समान रूप से बतलाये गये हैं। लेकिन आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण में पात्रों का वर्णन कुछ भिन्न प्रकार से किया है। उन्होंने लिखा है कि-"जो मन्दकषायी मिथ्यादृष्टि व्रत-शील आदि पालन करता है, वह जघन्य पात्र हैं। व्रत-शील आदि की भावना से रहित सम्यग्दृष्टि मध्यम पात्र है।" व्रतशील आदि से सहित सम्यग्दृष्टि उत्तम पात्र है। व्रत-शील रहित मिथ्यादृष्टि अपात्र है। उन्होंने पात्रों में कुपात्र का वर्णन नहीं किया है।
मिथ्यादृष्टि मनुष्य दान के प्रभाव से एवं तिर्यच दान की अनुमोदना के प्रभाव से भोगभूमि को प्राप्त करते हैं। वे बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि जिन्होंने पूर्व में मनुष्यायु बाँध ली है वे भी पात्र दान के प्रभाव से भोगभूमि में जन्म लेते हैं। उत्तम पात्रों को दान देने से उत्तम भोगभूमि की प्राप्ति होती है। मध्यम पात्रों को दान देने से मध्यम भोगभूमि में जन्म प्राप्त होता है। जघन्य पात्रों को दान देने के जघन्य भोगभूमि में जन्म होता है। कुपात्रों को दान देने के कारण ही जीवों को भोगभूमियों में तिर्यच बनकर उत्पन्न होना पड़ता है। कुपात्र दान के प्रभाव से जीवों को भोगभूमियों में तिर्यंच बनकर उत्पन्न होना पड़ता है। कुपात्र दान के प्रभाव से जीवों को जन्म म्लेच्छ खंड के मनुष्य के रूप में होता है। आर्यखंड में दासी, दास, हाथी, कुत्ता आदि भोगवंत जीवों को प्राप्त होने वाले भोग भी कुपात्र दान के प्रभाव से प्राप्त होती है। आर्यखंण्ड में नीच जाति के मनुष्यों को प्राप्त होने वाले भोग भी कुपात्र दान के प्रभाव से प्राप्त होते हैं। एवं सम्यग्दृष्टि सत्पात्रों को दान देने के प्रभाव से सोलह स्वर्गों में जन्म लेते हैं।
कुपात्र को दिया गया दान दाता को कुभोग प्रदान करता है। जिस प्रकार खराब भूमि में बोया बीज अल्प फल देता है। अपात्र को दिया या दान दु:ख देने वाला है। जैसे सर्प के मुख में पड़ा हुआ दूध भी विष हो जाता है। अतः सुपात्रों के लिए ही दान देना चाहिए।" शास्त्रों में पात्रों को ही दान देने का निर्देश दिया गया है। लेकिन जो कुपात्र व अपात्र दीन-दु:खी हैं, रोगी हैं, पीड़ित हैं क्या उनकी सहायता करनी चाहिए? एक सम्यग्दृष्टि जीव में अनुकंपा गुण रहता है जिस कारण वह संसार के सभी जीवों के दु:ख दूर करने