Book Title: Anekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 365
________________ अनेकान्त 63/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2010 14. मूलाचार 1/14 15. मूलाचारपिण्ड शुद्धि अधिकार 52-53 16. मूलाचार 7/20 17. बालग्गकाडिमित्तं परिग्गहगहणं ण होइ साहूण | भुंजेइ पाणिपत्तो इक्क ठाणम्मि || सूत्रपाहुड; 17 18. ठाणे चंकमणादाणे णिक्खेवे सयण आसण पयत्ते । पडिलेहणेण पडिलेहिज्जइ लिंगं च होइ सपक्खे। मूलाचार 916 19. एक्को वा वि तयो वा सीहो वग्घो मयो व खादिज्जो । जदि खादेज्ज से णीचो जीवयरासिं णिहंतॄणा । मूलाचार922 20. जो ठाणमोणवीरासणेहिं अत्थदि चउत्थछट्ठेहिं । भुंजदि आधाकम्मं सव्वे वि णितत्थया जोगांठ । मूलाचार 924 किं काहदि वणवासो सुनारो व रुक्मूलो वा भुंजदि आधाकम्मं सव्वे वि णिरत्थ्या जोगा । । मूलाचार 925 21. पासत्थो य कुसीलो संसत्तेसण्ण मिगचारित्तोय | दंसण्णाण चरिते अणिउत्ता पंदसंवेगा। मूलाचार 7/96 22. संयतगुणेभ्यः पार्श्वे अभ्यासे तिष्ठतीति पार्श्वस्थः । मूलाचारवृत्ति 23. वसधीसु य पडिबज्झो अहवा उवयरण कारओ मणिओ। पासधो समणाणं णाम सो होई । । मूलाचार 71197 वसतिकादिप्रतिबद्ध मोहबहुतोरात्रिदिवमुपकरणाला कारकोऽसंपत्त जनसेवी संवतेभ्योदूरीभूतः॥ मूलाचार टीका पृष्ठ 450 24. भगवती आराधना 1288 से 1294 25. कुत्सितं शीलं आचरणं स्वभावो वा यस्यासौ कुशीलः । मू.वृ. 7/96 26. सम्यगसंयतोष्वासक्तः संसक्त: आहारादि गृद्धया वैद्यमंत्र ज्योतिषादि कुशलत्वेन प्रतिबद्धो राजादि सेवा तत्परः । मूलाचार टीका पृ. 450 27. भगवती आराधना 1950/1722-24 28. मूलाचार वृत्ति 7/96 29. मृगस्य पशोरिव चारित्रमाचरणं यरयासौ मृगचारित्रः परित्यक्ताचार्योपदेश: स्वच्छन्दो गति काकीपणस्तपसूत्राद्यवितो धृतिरहिता 30. मूलाचार पृष्ठ 306 31. भगवती आराधना 1315 77 32. चारित्र सार 144/2 33. प्रायश्चित्त संग्रह 4 / 218 ***** - रीडर संस्कृत विभाग दि जैन कालेज, बहत

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