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अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 से बेखबर हम, हमारा समाज और हमारी सरकारें हिंसा की निंदा करते हैं किन्तु प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हिंसा को बढ़ावा देती हैं। खोटी कथा कहानियां रोज छप रही हैं और लाखों की संख्या में वितरित भी हो रही हैं।
पत्र पत्रिकाएं राग-द्वेषात्मक कथाओं से पटी पड़ी हैं जिनके कारण हिंसा, चोरी, कुशील आदि पापों में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है। यह सब कार्य राष्ट्र विरोधी हैं अतः जो श्रावक इन अनर्थ दण्डों को नहीं करता है वह राष्ट्र कल्याण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
श्रावक व्यसन मुक्त जीवन जीता है। वह नशीली वस्तुओं-शराब, चरस, गांजा, अफीम, हेरोईन, बीड़ी-सिगरेट, मांस, मधु से दूर रहता है। आज मद्य सब जगह उपलब्ध है। दूध मिलना भले ही दूभर हो गया हो।
मांस के लिए हमारे पशुधन को नष्ट किया जा रहा है जिससे खेती और पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। मांस के लिए अनाज की बलि दी जा रही है। जो उचित नहीं
जैन श्रावक इन विकृतियों से दूर रह कर राष्ट्र का बहुत बड़ा कल्याण करता है। शराब के नशे में होने वाले हिंसक व्यवहार के कारण प्रति वर्ष करोड़ों रुपयों की हानि होती है। जन हानि भी होती है जैन श्रावक विवेकी होता है जिसका उद्देश्य नुकसान करना नहीं, बल्कि नुकसान बचाना होता है। वह समाज का, प्रकृति, पर्यावरण एवं राष्ट्र का सबसे बड़ा हितैषी होता है।
जैन श्रावक का भाव, वचन और क्रियाएँ ऐसी होती हैं जिन से किसी को कोई कष्ट न हो अत: इनका संबन्ध राष्ट्र कल्याण से ही जुड़ जाता है। मेरी तो यही कामना है कि प्रत्येक भारतवासी को श्रावक धर्म अपनाना चाहिए ताकि सहज ही राष्ट्र कल्याण हो सके। संदर्भ
1. आचार्य उमास्वामी: तत्त्वार्थ सूत्र 7/2 2. सागारधर्मामृत 3. मद्य मांस मुध त्यागैः सहाणुव्रत पंचकम्।
अष्टौ मूलगुणानाहुर्गृहिणां श्रमणोत्तमाः।।
-आचार्य समंतभद्रः रत्नकरण्ड श्रावकाचार-66 4. मद्यमल मधुनिशाशन-पंचफलीविरति-पंचकाप्तनुती।
जीवदयाजलगालनमिति च क्वचिदष्टमूलगुणाः।।
___-पं. आशाधर : सागारधर्मामृत-2/18 5. आचार्य उमास्वामी : तत्त्वार्थसूत्र 6. पं. आशाधरः सागारधर्मामृत टीका-1 7. महाभारत 8. दर्शन प्राभृत 9. आचार्य अमृतचन्द्रः पुरुषार्थसिद्धयुपाय-30 10. आचार्य अमितगतिः