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अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 ___ - क्षमाशील जन गंभीर एवं शान्त होता है संकट उपस्थित होने पर भी। वह आत्म स्वभाव का चिंतन करता है। कायर व्यक्ति भयभीत, चंचल एवं उद्विग्न होता है। खमा कस्सिं
अविरद-सम्मदिद्विम्हि उत्तम-खमा होदि। सा वि अणंताणुबंधी-कोह-कसाय-समणेणं च अणुव्वदी सावगो अप्पच्चक्खाण-कोह-कसायअभावेणं च उत्तम खमासीलो जादि।
महव्वदि द्वि पच्चक्खाण-कोह-कसाय-संतेण च। - अविरत सम्यग्ज्ञदृष्टि में भी क्षमा होती है। वह भी अनंतानुबंधी क्रोध कषाय के शमन से। अणुव्रती श्रावक अप्रत्याख्यानी क्रोध कषाय के अभाव से क्षमाशील होता है। और महाव्रती प्रत्याख्यानी क्रोध कषाय के शान्त होने से क्षमाशील होता है।
अद्वम-गुणद्वाण-उवरि सव्व-गुणद्वाणेसुंच
संजलण-कोई-कसाय-अभावेण उत्तमखमा जायदे। - अष्ठम गुणस्थान से ऊपर सभी गुणस्थानों में संज्वलन क्रोध-कषाय के अभाव से उत्तमक्षमा उत्पन्न होती है।
सम्मादिद्वी आद-णाणी आदाणु भवी आदाणंदी णिरंतरं जायदे आद-सुद्धीए रहो जत्थ णत्थि सम्मत्त्स-सद्दहणं
तत्थ णो खमा। - सम्यग्ज्ञदृष्टि आत्मज्ञानी, आत्मानुभवी, आत्मानंदी आदि तो निरंतर आत्मशुद्धि में रत होता है। जहां सम्यक्त्व श्रद्धान नहीं है, वहां क्षमा नहीं है।
दंसण-णाण-समग्गो समणो सो संजदो भणिदो। सम-सत्तु-बंधवग्गो समसुह-रक्खो, पसंस-विंदसमो (प्रर.३/४०-४१)
तस्स खमा उत्तमखमा अत्थि। - श्रमण, संयत होता है, वह दर्शन, ज्ञान युक्त, शत्रु-बंधु वर्ग में समभाव वाला सुख-दु:ख, प्रंशसा एवं निंदा में भी समानता रखता है उसकी क्षमा उत्तम क्षमा है। उत्तम-मद्दद्दवधम्मो
मद्दवो माण-णिग्गहो। माणो अहिमाणो अहंकारो अहंभावो माणोदयो द्वि तस्स, णिहरणं मदवो। भिदु-भावो त्ति मद्दवो। मिदुपरिणामो कोमलभावो विणय-संपण्णदा मदविहीणदा