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पुस्तक समीक्षा
क्या यह ‘महावीर का बुनियादी चिन्तन' है?
-डॉ. अनेकान्त कुमार जैन
पुस्तक- महावीर का बुनियादी चिन्तन, लेखक- डॉ. जयकुमार
जलज, प्रकाशक- साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश, संस्करण- तेईसवां परिवर्द्धित, 2009, कुल पृष्ठ-32।
मेरे सामने साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश द्वारा भगवान महावीर के 2600वें जन्मोत्सव पर प्रकाशित 32 पेज की लघु पुस्तक 'भगवान महावीर का बुनियादी चिन्तन' नामक अत्यन्त लोकप्रिय कृति का तेईसवां परिवर्द्धित संस्करण-2009 रखा हुआ है। इसके लेखक डॉ. जय कुमार जलज जी एक वरिष्ठ साहित्यकार हैं, उनके कई उत्कृष्ट ग्रन्थ प्रकाशित हैं। अपने साहित्यिक अन्दाज में डॉ. जलज ने भगवान महावीर के चिन्तन को कई रूपों में अत्यन्त संजीदगी के साथ उकेरा है। कृति की भाषा इतनी अधिक प्रभावशाली है कि पाठक पूरी पुस्तक पढ़कर ही विराम ले पाता है। अपनी इन्हीं खूबियों के कारण ही यह कृति इतनी लोकप्रिय हुई है कि प्रथम संस्करण-2002 के बाद आज 2009 में इसका तेईसवां संस्करण निकाला गया है। कृति के अन्त में लगभग दस-पंद्रह विद्वानों का अभिमत भी प्रकाशित है। इस कृति के इतने अधिक संस्करण निकल जाने के बाद भी मुझे एक आश्चर्य तो हो रहा है कि इसमें कुछ तथ्य या विचार ऐसे भी प्रकाशित हैं, जो भगवान महावीर के चिन्तन या उनकी परंपरा से मेल नहीं खाते हैं। समीक्ष्य कृति में मैं विचारकों का ध्यान कुछ उन बिन्दुओं पर दिलाना चाहता हूँ जो ऐसा प्रतीत होती है कि महज 'जलज' जी के चिन्तन से प्रसूत है, जैन आगम सम्मत नहीं है। पृ. 12 पर लिखा है- 'महावीर की सर्वज्ञता का यह अर्थ नहीं है कि उन्हें संसार की सभी वस्तुओं और प्रक्रियाओं का ज्ञान हो गया था...... उनकी सर्वज्ञता का अर्थ है वे उसे जान गए थे जिसे जानने के बाद और कुछ जानना बाकी नहीं रह जाता..... महावीर इसी अर्थ में सर्वज्ञ हैं। उन्होंने स्वयं को जान लिया। स्वयं को जान लेना सबको जान लेना है।"
मेरा इस विषय में विनम्रता पूर्वक निवेदन है कि सर्वज्ञता का विषय तो तीनों लोकों की, तीनों कालों की प्रत्येक द्रव्य की प्रत्येक पर्याय होती है। तत्त्वार्थसूत्र में केवलज्ञान का