________________
अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010
अममाइत्त- अप्पणो। माया-मम-परिच्चागो अवंक जोग-णिग्गहो॥ रिजुभावो त्ति अज्जवो। रिजु त्ति सरल- परिणामो। मायाचार-परिणादि-रहिदो भावो अज्जवो। मोक्षुण कुडिलभावं णिम्मल-हिदमेण चरदि समणो। अज्ज्वधम्मो तइयो, तस्स दु संभवदि णियमेण॥
(बारस-अणु073) अवक्रता, काय, वचन और मन की होना, योग का ऋजुभाव है जो माया कषाय के उदय का निग्रह भी है।
ऋजुभाव, आत्मा निर्मल भाव ममत्व रहित स्वभाव आर्जव है। माया- ममत्व का परित्याग अवक्रता एवं योग निग्रह आर्जव है। ऋजुता का भाव होना आर्जव धर्म है। ऋजु का अर्थ है सरल परिणाम। मायाचार रहित परिणति रूप भाव, आर्जव है।
जो श्रमण कुटिल भाव को छोड़कर निर्मल हित से गतिशील रहता है, उसका नियम से आर्जव धर्म है।
मायाभावो त्ति अज्जवो माया कुडिलभावो वंकं छलं कवडं च तस्स परिच्चागो त्ति अज्जवो माया-अभावो त्ति। जो चिंतेदिण वंकं, कुणदि ण वंक ण जंपए वंक। ण य गोवदि णियदोसे अज्जवधम्मो हवे तस्स॥
(कार्ति.396) माया का अभाव होना आर्जव है
माया का अर्थ है कुटिल वक्रता, छल एवं कपट, उसका परित्याग आर्जव है माया का अभाव है। जो न वक्र सोचता, न वक्र करता, न वक्र बोलता, और न अपने दोष को छिपाता है, उसका आर्जव धर्म होता है।
सहज-सरल-विसुद्ध-परिणामी सोही अत्थि। जो आद-सोही होदि