Book Title: Anekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 296
________________ अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 वाले कठोर वचन दोषयुक्त होने के कारण त्याज्य हैं। इसी प्रकार वे संदिग्ध अथवा निश्चय की दशा में निश्चय वाणी का प्रयोग भी नहीं करते, पूर्ण रूप से निश्चित हो जाने पर निश्चित वाणी बोलते हैं। वे सत्य, मृदु और निर्दोष भाषा में ही बोलते हैं तथा सत्य होने पर भी कभी भी अवज्ञा-सूचक वचनों का प्रयोग नहीं करते, वरन् सम्मान सूचक शब्दों का ही प्रयोग करते हैं। संक्षेप में कहें तो जैन साधु, विचार व विवेकपूर्ण संयमित और संतुलित भाषा का ही प्रयोग करते है। इसी कारण भारतीय कानून में जैन साधु को अपराध कोटि से मुक्त किया गया है, उनके लिए किसी भी प्रकार का कानून नहीं है। कानून तो स्थूल झूठ का त्याग करने वाले सत्याणुव्रती और अव्रती के लिए है, क्योंकि श्रावक मुनि के समान सूक्ष्म झूठ का त्याग नहीं कर सकता। इसलिए उसे स्थूल झूठ का ही त्याग कराया जाता है। जिस झूठ से समाज में प्रतिष्ठा न रहे, प्रामाणिकता खण्डित होती हो, लोगों में अविश्वास उत्पन्न होता हो तथा राजदण्ड का भागी बनना पड़े, इस प्रकार के झूठ को स्थूल झूठ कहते हैं। सत्याणुव्रती श्रावक इस प्रकार के स्थूल झूठ का मन, वचन, काय से सर्वथा त्याग करता है, साथ ही वह कभी ऐसा सत्य भी नहीं बोलता जिससे किसी पर आपत्ति आती हो। वह अपनी अहिंसक भावना की सुरक्षा के लिए हित, मित और प्रिय वचनों का ही प्रयोग करता है। आचार्य उमास्वामी जी ने सत्य की परिभाषा में कहा है कि असदभिधानमनृतम् अर्थात् असत् कहना झूठ है। असत् के तीन अर्थ लिए जा सकते है।, पहला अर्थ जो बात नहीं है वह कहना, दूसरा अर्थ जैसी बात कही गई है वैसी न कहना, तीसरा अर्थ बुराई या दुर्भावना को लेकर किसी से कहना। इसे झूठ कहा गया है। असत्य से बचाव के कारण ___ असत्य बोलने से मानव का सर्वतोमुखी पतन होता है। आचार्यों ने कहा है कि मानव किन कारणों से झूठ बोलता है जिससे उसके व्रत में अतिचार लगता है उन अतिचारों से बचने के लिए भावनाओं का निर्देश किया गया है, आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थ सूत्र में असत्य से बचने के लिए पाँच भावनाओं का विवेचन करते हुए कहा है किक्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषणं च पञ्च अर्थात् क्रोध, लोभ, भय, हास्य का त्याग तथा शास्त्रानुसार वचन का प्रयोग करना ये पाँच भावनाएँ हैं। जिससे मानव असत्य से बचता है। क्रोध, लोभ, भय, हास्य के वशीभूत होकर हमेशा असत्य का सहारा लेता है। क्रोध में वह यह जान नहीं पाता कि उसके मुख से सत्य वचन निकल रहे हैं या असत्य वचन तथा वह वचन किसी के हित में निकल रहे हैं या अहित में निकल रहे भारतीय कानून में क्रोध में बोला गया असत्य, भय में बोला गया असत्य, लोभ में बोला गया असत्य, हास्य में बोला गया असत्य तथा अनर्गल वार्तालाप में अपमानित करने के आशय से असत्य भाषण किया गया है तो उसके लिए धारा 500 के तहत दो वर्ष कारावास या जुर्माने की सजा तथा यदि अन्य को कपट करने के आशय से असत्य भाषण किया गया तो धारा 417 के अनुसार 1 वर्ष या जुर्माना तथा 419 के अन्तर्गत 3 वर्ष या जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है।

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