________________
धर्म स्वरूप
- डॉ. उदयचन्द्र जैन धम्मो
अभिदोजीवणं धम्मो आद-सहाव-धम्मोवि॥६॥ आद-सहाव-धम्मो। उत्तम-खंति-मद्दव-अज्जव-सुचि-सच्च
संजम-तव-आकिंचण्ण-बहचेरो आदसहावो आदपरिणामो। - जीवन का अमृत है। आत्मा का स्वभाव धर्म है। क्षमा भी है। उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य ये धर्म हैं आत्म स्वभाव है, आत्म परिणाम है।
कुन्दकुन्देण पण्णतो भाव पाहुडम्हि-मोहकलोह-विहीणो परिणामो अप्पणो धम्मो। इमादो करणादो पत्तेदि साहगो अदिसंय विसुद्धं अणुवमं अणंतणाणं अणंतदंसणं अणंत-सुहं अणंत-वारिच च। सुहे ठाणे हिदो साहगो इंदो णारिंदो मणुजिंदो होदि।
तव-चाग-दाण-सील-भावणामयी सावगो जादि। -आचार्य कुंदकुद ने भावपाहुण में कहा है- मोह-क्षोभ विहीन परिणाम आत्मा का ध म है। इसके कारण से साधक अतिशय विशुद्ध, अनुपम, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख
और अनंतवीय को प्राप्त होता है। शुभ स्थान में स्थित साधक इन्द्र, नरेन्द्र, मनुजेन्द्र आदि होता है। इसी से तप, त्याग, दान, शील एवं भावनामयी श्रावक होता है।
अहिंसा धम्मो संजमोधम्मो तवो धम्मो वि।
अहिंसाए समरंभ-समारंभ-आरंभ-किरियाए जदणं। - अहिंसा धर्म, संयमधर्म और तप भी धर्म है। अहिंसा धर्म से समरंभ, समारंभ और आरंभ क्रियाएं करते समय सावधानी रखता है।
सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं भूदाणं सव्वेसिं सज्ञाणं सव्वेसिं पाणीणं च आद-समं मण्णदे। सो भिसीभाव-जुत्तो सि इठं कज्जाणि कुव्वदे।
सेय-सुहं पएच्छेदि णिम्मला आद-भावणा। - वह सब जीवों, भूतों, सत्त्वों एवं प्राणियों का आत्म समान मानता है। वह मैत्री भाव युक्त इष्ट कार्य करता है, और आत्मा की निर्मल भावना युक्त श्रेय सुख की ओर गतिशील