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अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010
30. सरागसंयमसंयमासंयमऽकाम निर्जराबालतपांसि देवस्य। तत्वार्थसूत्र 20/6/20 31. सम्यक्त्वञ्च। तत्त्वार्थसूत्र 6/21 32. कायवाड्.मनसां कौटिल्येन वृत्तिर्योगवक्रता। तत्त्वार्थसूत्र 6/22/1 33. तविपरीतं शुभस्य। तत्त्वार्थसूत्र 6/23 34. दर्शनविशुद्धिविनयसम्पन्न्ताशीलव्रतेष्वनातिचारोऽभीक्ष्णज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी
साधुसमाधिवैयावृत्यकरणमर्हदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावश्यकापरिहाणिर्मार्गप्रभावना
प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकरत्वस्य। तत्त्वार्थसूत्र 6/24 35. वृहद्रव्यसंग्रह गाथा 37 ब्रह्मदेव टीका 36. परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसदगुणच्छादनोद्भावने च नीचगोत्रस्य। तत्त्वार्थसूत्र 6/25 37. तद्विर्पययोनीचवृत्यनुसेको चोत्तरस्य। तत्त्वार्थसूत्र 6/26 38. दोषोद्भावनेच्छा निन्दा। तत्त्वार्थवार्तिक 6/25/1 39. धवला पु. 3 भाग 5, पृष्ठ-389 40. विघ्नकरणमन्तरायस्य। तत्त्वार्थसूत्र 6/27
- अध्यक्ष संस्कृत विभाग दिगम्बर जैन कालेज बड़ौत (बागपत)
उत्तरप्रदेश
भद्रं भद्रमिति ब्रूयाद्यद्रमित्येव वा वदेत् । शुष्कवैरं विवादं च न कुर्यात्केनचित्साह ॥
मनुस्मृति, 4/139 मनुष्य भद्र शब्द का ही प्रयोग करे। सामान्यतया 'अच्छा है, ऐसा ही कहे। अकारण ही किसी के साथ भी वैर और विवाद न करे।