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अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010
दीन, अनाथ आदि को दिए जाने वाले वस्त्र, पात्र, आश्रय आदि को रोकना, प्राणिवध आदि अन्तरायकर्म के आस्रव के कारण हैं।
उक्त कारणों को जानकर दूसरों के बाधा पहुँचाने वाले कार्यों को नहीं करना चाहिए क्योंकि दूसरों को बाधाकारक कार्यों के करने से स्वयं को अगले भवों में हानि उठानी पड़ती है।
यहाँ कर्म की मूल प्रकृतियों के आस्रव के कारणों पर जो विशद चर्चा की है उसका मुख्य ध्येय यह है कि आस्रव और बन्ध दोनों ही संसार के हेतु हैं। इनको जानकर ही प्राणी संसारवृद्धि के कार्यों से अपनी रक्षा कर सकता है। संदर्भ
1. कायवाड्.मन:कर्म योगः। तत्वार्थसूत्र 6/1 2. स: आस्रव: 1-तत्त्वार्थसूत्र 6/2 3. सकषायाकषाययोः साम्पराययिकेर्यापथयोः। तत्त्वार्थसूत्र 6/4 4. तत्त्वार्थवार्तिक 6/4 पृष्ठ 258 (भाग-2) 5. इन्द्रियकषायाव्रतक्रियाः पञ्चचतुःपञ्चविंशतिसंख्या पूर्वस्य भेदाः। तत्वार्थसूत्र 6/5 6. तत्त्वार्थवार्तिक 6/4/1-7 7. पंचास्तिकाय 8. तत्वार्थसूत्र 6/6 9. तत्प्रदोष निहवमात्सर्याऽन्तरायाऽऽसादनोपघातज्ञानदर्शनावरणयोः। तत्वार्थसूत्र 6/10 10. पराभिसन्धानतो ज्ञानव्यपलापो निह्नवः । तत्वार्थसूत्र 6/10/1 11. ज्ञानव्यवच्छेदकरणम् अन्तरायः। तत्वार्थसूत्र 6/10/4 12. प्रशस्तज्ञानदूषणमुपघातः। तत्वार्थ सूत्र 6/10/6/1 13. तत्त्वार्थसार 4/13/10 14. धवला पु. 6 पृ. 10 15. बृहद् द्रव्यसंग्रह गाथा 33 की टीका 16, दु:खशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनान्यात्मपरोभयस्थन्यसद्वेद्यस्य। तत्त्वार्थसूत्र 6/11 17. संक्लेशप्रवणं स्वपरानुग्रहाभिलाषविषयमनुकम्पाप्रायं परिदेवनम्।। तत्त्वार्थसूत्र 6/11/1-6 18. तत्त्वार्थसूत्रवार्तिक 6/11 पृ. 301 (हिन्दी टीका आ. सुपार्श्वश्री भाग-2) 19. भूतव्रत्यनुकम्पा सरागसंयमादियोगः क्षान्तिः शौचमिति सद्वेद्यस्य। त.सूत्र 6/12 20. जन्ममरणप्रबन्धलक्षणसंसारोत्पादसामर्थ्यमन्तरेण तत्सत्त्वस्यासत्त्वसमानत्वात्। धवला पु.
भाग-1 पृष्ठ-43 21. केवलीश्रुतसंघधर्मदेवाऽवर्णवादो दर्शनमोहस्य। तत्त्वार्थ सूत्र 6/13 22. कर्मग्रंथ प्र. भा. गाथा 13 23, कार्य चारित्रमोहस्य चारित्राच्युतिरात्मनः। पञ्चाध्ययी उत्तरार्ध श्लोक. 690 24. गोम्मटसार कर्मकाण्ड जीवतत्त्वप्रदीपिका गाथा 33 25. बहवारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः। तत्त्वार्थसूत्र 6/15 26. तत्त्वार्थवार्तिक 6/15/3 27. तत्त्वार्थवार्तिक पृष्ठ 138 (भाग-2) आर्यिका सुपार्श्वमती कृत टीका 28. अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य। तत्त्वार्थसूत्र 6/17 29. तत्वार्थवार्तिक 6/17/14