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स्वरूप संबोधन में आत्मा का विधि-निषेध और मूर्तत्व-अमूर्तत्व
-प्रो. कमलेशकुमार जैन
समस्त भारतीय दार्शनिकों के साथ ही पाश्चात्य दार्शनिकों ने भी द्रव्य अथवा पदार्थ को दो भागों में विभाजित किया है- जड़ और चेतन अथवा जीव और अजीव। वस्तुतः इन दो के अतिरिक्त तीनों लोकों में और कुछ भी नहीं है और यदि कुछ है तो वे सभी इन दोनों के भेद-प्रभेद हैं, विस्तार हैं। जिनमें किसी भी अपेक्षा से जानने और देखने की शक्ति है, वे सभी जीव अथवा चेतन हैं और इनसे इतर जो भी द्रव्य अथवा पदार्थ हैं, वे सभी जड़ अथवा अचेतन अजीव हैं। इसमें किसी भी प्रकार का कोई सन्देह नहीं है।
चेतनद्रव्य जीव आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित है। आत्मा के अस्तित्व को चार्वाक दर्शन के अतिरिक्त प्रायः सभी आस्तिक-दर्शन स्वीकार करते हैं।
जैनदर्शन एक ही वस्तु में अनेक धर्मों को स्वीकार करता है अर्थात् कोई भी वस्तु एक होते हुए भी अनेक धर्मों अथवा गुणों से युक्त है। इसे ही जैनदर्शन में अनेकान्तवाद के नाम से स्वीकार किया गया है। इसी अनेकान्तात्मक वस्तु को जब हम वचन के द्वारा अभिव्यक्त करते हैं तो उसके विविध धर्मों को हम क्रमश: वाणी का विषय बनाते हैं। इसी को जैनदर्शन में स्याद्वाद सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया गया है।
अनेकान्तवाद सिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में जब हम वस्तु के विविध धर्मों का चिंतन करते हैं और तदनन्तर स्याद्वाद सिद्धान्त के आधार पर उनका कथन करते हैं तो किसी अपेक्षा से वस्तु विधि रूप है (स्यादस्ति), किसी अपेक्षा से वस्तु निषेध रूप है (स्यान्नास्ति)
और किसी अपेक्षा से वस्तु विधि-निषेधरूप है (स्यादस्तिनास्ति)- वस्तु के ये तीन रूप प्रकट होते हैं और जब इन्हीं तीन रूपों का कथन किसी अपेक्षा से व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं तो वह अवक्तव्य रूप हो जाता है (स्यादवक्तव्य) यही कथन किसी अपेक्षा से विधि रूप है और किसी अपेक्षा से सत् कहने योग्य होता है (स्यादस्त्यवक्तव्य), कभी स्थिति यह बनती है कि वस्तु का कथन किसी अपेक्षा से निषेध रूप होता है और साथ ही किसी अपेक्षा से वस्तु का कथन नहीं ही किया जा सकता है (स्यान्नास्त्यवक्तव्य), कभी स्थिति ऐसी भी आती है जब हम वस्तु का किसी अपेक्षा से विधि रूप कथन करते हैं और किसी अपेक्षा से निषेध रूप कथन करते हैं और साथ ही किसी अपेक्षा से वस्तु का कथन नहीं ही किया जा सकता है (स्यादस्तिनास्त्यवक्तव्य)। इस प्रकार सात भंगों अथवा सात प्रकार से वस्तु का कथन किया जाता है।