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अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010
गृद्धकूट शिखर में ठहरे हुए थे। बुद्ध ने आनंद से प्रश्नोत्तर करते हुए कहा कि जब तक वज्जियों में निम्नलिखित सात बातें मिलेगी, वज्जियों का अभ्युदय होगा, हानि नहीं
(1) जब तक वज्जि अपनी परिषद की बैठकें भरपूर रूप से बार-बार करते है। (2) जब तक वे मिलकर बैठते-उठते और अपने वृजिकार्यों (राष्ट्रीय कार्यों) को
मिलकर करते हैं। (3) जब तक वे उचित विधि (प्रोसीजर) के बिना कोई कानून जारी नहीं करते,
विधिपूर्वक बनाये कानून का उल्लंघन कर कोई कार्य नहीं करते और वज्जियों की विधिपूर्वक बने कानून से स्थापित प्राचीन संस्थाओं के अनुकूल आचरण
करते हैं। (4) जब तक वे अपने वृद्धों और गुरुओं का सम्मान करते, आदर सत्कार करते,
उन्हें मानते-पूजते और सुनने लायक बातों को सुनते-मानते और तदनुकूल
आचरण करते हैं; (5) जब तक वे अपनी कुल-स्त्रियों और कुल-कुमारियों पर जोर-जबरदस्ती कर
उन्हें नहीं रोकते या उन पर अत्याचार नहीं करते। (6) जब तक वे अपने वृजि-चैत्यों (जातीय मंदिरों और स्मारकों) का आदर-सत्कार
और मान करते तथा उनको पहले से दी गयी धर्मानुकूल बलि (चढ़ावा-पूजावा)
का अपहरण नहीं करते, उसे नहीं छुड़ाते। (7) जब तक वे अपने अहंतों की शरण, रक्षा और पोषण का उचित प्रबन्ध करते
है........ तब तक वज्जियों की वृद्धि ही होगी, हानि नहीं। उक्त सात धर्मों में प्रथम तीन धर्म स्वरूप प्रजातांत्रिक व्यवस्था के आधार हैं। वृद्धों और नारियों का सम्मान (धर्म 4-5) वैशाली की उच्च संस्कृति भावना की प्रतीक है। अंतिम दो वैशाली वासियों की धार्मिक सहिष्णुता, उदारता और अविरोध का सूचक है।
भगवान बुद्ध की उक्त बातें सुनकर चतुर वर्षकार मंत्री समझ गया कि किसी भी जाति या समूह को केवल बाहरी भौतिक शक्ति से विजित नहीं किया जा सकता। उसे अजातशत्रु से कुटिल मंत्रणा की। राजगृही से उसे निष्कासित कर दिया। वैशाली में उसने शरण ली और धीरे-धीरे लिच्छवियों में फूट और अविश्वास के बीज बो दिये। लिच्छवियों की एकता में ग्रहण लगा। अजातशत्रु ने पाटलीपुत्र में अभेद्य महल बनवाया और वैशाली पर आक्रमण कर निर्ममता पूर्वक गणतंत्र को ध्वस्त कर मगध राज्य में विलीन कर लिया। यह घटना बुद्धनिर्वाण के तीन वर्ष बाद की है। प्रजातंत्र का चिराग, भगवान महावीर की जन्मभूमि का दिव्यावदान- लिक्ष्छवियों/ वज्जियों का गणतंत्र-भारत भू में लुप्त हो गया, जो 2500 वर्षों बाद भगवान महावीर की अहिंसा, सहनशीलता और सत्य के सिद्धान्तों पर आध रित असहयोग आंदोलन की सफल परिणति के रूप में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में 15 अगस्त, 1947 को पुनः अवतरित हुआ। धन्य है वज्जियों का गणतंत्र, धन्य है, भगवान महावीर का अहिंसा-सत्य का सिद्धांत, धन्य है वे भारतवासी जिन्होंने जीवन का बलिदान कर प्रजातंत्र के चिराग को पुनः जलाया और विश्व को गणतंत्रीय भावनाओं की सफलता