________________
अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 थे- इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता।
वैशाली गणतंत्र की एक विशिष्ट परंपरा थी। जब भी कोई लिच्छवी कुमार अपने पिता का पद गणराज्य- सत्ता मे ग्रहण करता था तब केवल एक बार 'अभिषेक -पुष्करिणी' के जल से उसका अभिषेक किया जाता था। इसके जल को राजाओं के अतिरिक्त दूसरा कोई छू भी नहीं सकता था। उसकी रक्षा के लिये कड़ा पहरा रहता था। ऊपर लोहे की जाली लगी थी, ताकि उड़ते पक्षी तक उसमें चोंच न डुबो सकें।
वैशाली में अगणित चैत्य गृह या पूजा स्थल थे। उनमें मुख्य थे- उदेन चैत्य, गोतमक चैत्य, सत्तम्वक चैत्य, बहुपुत्तक चैत्य, सारदन्द चैत्य, चापाल चैत्य, वापिनहय चैत्य, मर्कटहदतीर चैत्य, मुकुटबन्धन चैत्य आदि। वैशाली में धार्मिक सहिष्णुता थी। जैनधर्म और बौद्धधर्म दोनों पल्लवित थे। वैदिक धर्मानुयायी भी थे।
आ. विजयेन्द्र सूरि के अनुसार "बुद्ध के काल में वैशाली श्रमण-निग्रंथों का एक बड़ा सुदृढ़ केन्द्र था। यह बात न केवल जैन ग्रंथों से, वरन् बौद्धग्रंथों से भी प्रमाणित है। महावस्तु में कथा आती है कि घर छोड़कर वैराग्य लेने के बाद बुद्ध वैशाली में आरालकालाम के पास भी आये थे, जो जैन था। अंगुत्तर निकाय की मनोरथ पूरणी टीका में कहा गया है कि बुद्ध के चाचा वप्प स्वयं जैन थे।''42 वैशाली (लिच्छवी गणतंत्र) की प्रजातंत्रीय कार्य-प्रणाली ___महापंडित राहुल सांकृत्यायन की अध्यक्षता में दि. 21/4/48 को चतुर्थ वैशाली महोत्सव संपन्न हुआ था। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में वैशाली के प्रजातंत्र की विशेषताओं और बौद्ध भिक्षु संघ पर उसके प्रभाव की विस्तृत, ससंदर्भ जानकारी दी थी, जो मुलतः पठनीय है। उसके आधार पर अति संक्षेप में उसका विवरण प्रस्तुत हैविधायिका
गणों की सर्वोपरि शासन-सभा या पार्लियामेन्ट को संस्था कहा जाता था जहाँ संस्था की बैठक हुआ करती थी, उसे संस्थागार (संथागार) कहा जाता था। संस्थागारों में बज्जी सभा करते थे। राजकाज और विधान की बातें कर निर्णय लेते थे। राक राय या बहुमत से निर्णय करते थे। इन संस्थाओं की कार्य प्रणाली कैसी थी उसका कोई साक्षात प्रमाण नहीं है। बुद्ध ने अपने भिक्षु संघ की स्थापना इन्हीं संघ राज्यों के नमूने से की थी। इसलिये इस विषय में भिक्षु संघ के विधान (विनय-नियमों) से हम समझ सकते हैं कि संघ राज्यों में किस तरह संस्था काम करती थी। त्रिपिटक मे गणराज्य को 'संघ' शब्द से संबोधित किया गया है। संस्था की बैठक संस्था-राज या उपराज की अध्यक्षता में होती थीं। कोई भी प्रस्ताव आता तो उसे याचना कहा जाता था। विनय पिटक के अनुसार याचना, ज्ञप्ति, अनुश्रावण, धारणा की प्रक्रिया के माध्यम से सर्व सम्मत निर्णय होता या मतदान होता था, जिसे छन्द शब्द का प्रयोग होता था। वैशाली के प्रजातंत्र के इतिहास-भवन के अवशेष हम सुरक्षित नहीं रख सके, समुद्र पार सिंहल और चीन के लोगों ने सुरक्षित रखा।