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अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010
कर्म-भूमि थी।
महावीर के काल में वैशाली लिच्छवी गणतंत्र की राजधानी थी। गणतंत्र का नाम भी वैशाली था। इसके आधीन 9 मल्लकी, 9 लिच्छवी, काशी-कौशल के 18 गणराजा थे। वैशाली के अंतर्गत 18 गणराजाओं का उल्लेख कल्पसूत्र (सूत्र 128) भगवती सूत्र (शतक 7, उद्देशक 9), निरयावलि, आवश्यक-चूर्णि आदि ग्रंथों में मिलता है। 38 यह परामर्शदात्री संघ था जिसका अस्तित्व भगवान महावीर के परिनिर्वाण तक था।
नौ लिच्छवि का संघ 'वज्जी संघ' के नाम से प्रसिद्ध था। इसकी स्थापना विदेह के राजतंत्र के अवसान के बाद हुई थी। इस संघ में आठ कुलों के नौ गण थे। विदेह, लिच्छवि, ज्ञातृक, वृजि, उग्र, भोग कौरव और इक्ष्वाकु- इन आठ का नाम मिलता है। नौवाँ कुल ज्ञात नहीं है। इस संघ को 'वज्जियों का अष्टकुल' या लिच्छवि संघ' कहा जाता था। ये सभी कुल लिच्छवि थे। इनमें ज्ञातृवंशी प्रधान थे। वे काश्यष गोत्री थे। एक प्रधान गणपति या राजप्रमुख होता था। उस समय चेटक वज्जिसंघ के प्रमुख थे और भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी थे।
विदेहों की प्राचीन राजधानी मिथिला थी जो वैशाली के गणतंत्र में समाहित हो गयी। वैशाली ने कब और किस प्रकार गणतंत्र अपनाया? डॉ. हेमचन्द्र राय चौधरी ने मिथिला" में राजतंत्र से प्रजातंत्र में परिवर्तन होने का कारण बतलाया है। इतना सच है कि लिच्छवी-प्रजातंत्र का जन्म बुद्ध के बहुत पहले हो चुका था। बुद्ध ने स्वयं वज्जियों की बहुत पहले से आती हुई प्राचीन संस्थाओं की प्रशंसा खुले शब्दों में की है।
प्राचीन हिन्दू शास्त्रों के अनुसार वैशाली की स्थापना राजा विशाल ने की थी। विशाल इक्ष्वाकु का पुत्र था। राजा विशाल का गढ़ अभी भी अपने पुरातन वैभव की स्मृतियाँ संजोये जमींदोज रूप में बसाढ़ में विद्यमान है। बौद्धग्रंथों के अनुसार तीन बार नगर को विशाल करने के कारण इसका नाम वैशाली पड़ा। यह मोहक नाम प्रजातंत्र का आद्य- नगर होने के कारण प्रसिद्ध हुआ। उस समय वैशाली समृद्धिशाली , बहुत मनुष्यों से भरी, अन्न-पान-संपन्न थी। उसमें 7777 प्रासाद, 7777 कूटागार (कोठे) 7777 आराम (उद्यानगृह) और 7777 पुष्करिणियाँ थीं।" डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी ने 7707 का उल्लेख किया है।
तिब्बती परंपरानुसार वैशाली नगरी में 7000 सोने के कलश वाले महल, 14000 चांदी के कलश वाले महल तथा 21000 तांबे के कलश वाले महल थे। ये तीन परकोट से घिरे थे। उनके द्वार पृथक्-पृथक् थे और सुरक्षा- टावर से संपन्न थे। इन महलों में क्रमशः उत्तम, मध्यम और जघन्य कुलों के लिच्छवी निवास करते थे। महावस्तु ग्रंथ के अनुसार वैशाली के नागरिक दो श्रेणी के थे, अभ्यंतर- वैशालिक और बाह्य-वैशालिक। उनकी कुल संख्या 84,000 से दुगनी 1,68,000 थी। वैशाली का वैभव देव नगरी जैसा भव्य, मनमोहक था। वहां के नागरिक आत्म-संयमी, उत्सव और कला प्रिय थे। अपने कर्तव्यों और गणतंत्र के हितों के प्रति सजग रहते थे।
आगम ग्रंथों के अनुसार 'वैशाली' तीन भागों या जिलों में विभक्त थी- वैशाली, कुण्डग्राम और वाणिज्यग्राम। ये तीनों ही नगर भिन्न-2 थे। यह एक दूसरे से कितनी दूर