________________
अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 ने उसे बुद्धदेव को दान में दे दिया। इस आश्रम में एक दो मंजिला कूटागारशाला बनवायी गयी जिसमें बुद्ध प्रायः रहते थे। दूसरे वैशाली की गणिका अनिंद्य सुन्दरी अम्बपाली ने एक बार बुद्ध को भोजन हेतु आमंत्रित किया और दक्षिणा के रूप में 'आम्रकानन' भेंट कर दिया। वह भी बौद्ध भिक्षुणी बन गयी। तीसरी घटना थी स्त्रियों को संघ में प्रवेश करने की अनुमति देने की। उनकी धातृमाता गोतमी संघ में प्रवेश चाहती थी। प्रारंभ में बुद्ध ने अनुमति नहीं दी। आनंद के अनुरोध पर वैशाली में बुद्ध ने गोतमी को संघ में सम्मिलित कर नया कार्य किया और भिक्षुणी संघ बना। बुद्ध ने भविष्यवाणी की- 'हे आनंद! अगर नारी जाति को गृहस्थाश्रम त्याग करके सन्यास आश्रम में प्रवेश करने की आज्ञा न दी जाती तो तथागत द्वारा प्रतिष्ठित पवित्र धर्म एक हजार वर्ष कायम रहता। मगर चूंकि स्त्रीजाति को संघ में प्रवेश करने की आज्ञा दी गयी है, इस कारण से हमारा यह पवित्र धर्म अब केवल पांच सौ वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
इतिहास की त्रासदी, चीनी यात्री हुएनसांग (637-639ई.) जब वैशाली आया तब वह नगरी उजाड़ हो चुकी थी। संघाराम ध्वस्त हो चुके थे। हाँ जैन अच्छी संख्या में थे। जैनों के वैशाली में अच्छी संख्या पाये जाने का यह आखिरी प्रमाण है। बारहवीं सदी के अंत में वैशाली पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। लिच्छवीगण-संघ का बौद्ध-संघ पर प्रभाव:
भिक्षु-संघ की कार्य-पद्धति लिच्छवीगणतंत्र के आधार पर बनी है। भिक्षुसंघ में प्रस्ताव रखने और उसे पारित करवाने की वही विधि अपनायी गयी जो लिच्छविगणतंत्र की थी। इसका वर्णन विनय-पिटक (चुल्लवाग 4/3/5) में उपलब्ध है। लिच्छविगणतंत्र में वज्जियों के 'अष्टकुल' सम्मिलित थे, बुद्ध ने भी अपने मध्यममार्ग में अष्टअंग निर्धारित किये; यथा-सम्यक्दृष्टि सम्यक्संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीव, (आजीविका), सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधिा मगधराज के ब्राह्मण मंत्री वर्षकार को बुद्ध ने लिच्छविगणराज्य के सात अपरिहार्य धर्म बताए थे, जो वैशाली के विनाश के भी निमित्ति बने। वर्षकार के चले जाने पर बुद्ध ने आनंद से कहा- "राजगृह के निकट रहने वाले सब भिक्षुओं को इकट्ठा करो।" तब उन्होंने भिक्षु-संघ के लिये सात धर्म का विधान किया। उनमें प्रथम चार धर्म लिच्छविधर्म के अनुरूप थे और अंतिम तीन लोभ से विरति संयम और मन के संयम तथा सदसंगति से संबन्धित थे। विपश्यना (देखना) ध्यान पद्धति जैन ध्यान योग का रूपांतरित रूप है। बुद्ध की यह गुणग्राहकता और बुद्धि का वैशिष्ट्य था जो उन्होंने विना किसी आग्रह के लिच्छविगणतंत्र की विधि-पद्वति को भिक्षु-संघ की पद्वति के रूप में स्वीकार किया। भगवान महावीर लोक कल्याण एवं गणतंत्र की पावन भावनाओं से ओतप्रोत थे, उन्होंने उसे पुष्ट किया और 'तीन रत्न', सात तत्त्व, छहद्रव्य के तात्त्विक और दार्शनिक चिंतन द्वारा विचारों में अनेकान्त, वाणी में स्याद्वाद और आचरण में अहिंसादि पांच व्रतों के आचरण का उपदेश देकर आत्मशुद्धि, समता, संतोष, समानता और समन्वय के शाश्वत सूत्र दिये। दोनों विभूतियों को नमन।