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अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010
___31. आचारांग सूत्र पत्र 389 में पाठ इस प्रकार है- 'समणस्स णं भगवओ
महावीरस्स अमरा वासिदस्सगुत्ता तीसे णं तान्नि ना., तं.- तिसला इ वा
विदेहदिन्न, इवा पियकारिणां इ वा।" 32. आवश्यक चूर्णि (पूर्व भाग) पत्र 245 में पाठ इस प्रकार है। 'भगवती माया
चेडगस्स भणिणी, भी (जा) यो चेडगस्स छूया।' अर्थात भगवान महावीर की
माता चेटक की बहिन थी और भौजाई चेटक की पुत्री थी। 33. आवश्यक चूर्णि (उत्तर भाग) प. 164 34. Gilgiat Manuscripts, Vol. III, Part-2, Page 1-15 & 16-22 (hom
age to vaisali, page 319 35. 'जैन दृष्टिकोण से वैशाली, 'वैशाली अभिनंदन ग्रंथ पृ. 261 36. वैशाली, जैनधर्म और जैनधर्म, वैशाली अभिनंदन ग्रंथ , पृ. 164 37. (अ) महावीरस्स अम्मानियरो पासावाच्चिग्जा...आदि। आचारांग, श्रुतस्कंध, सूत्र
187 पृ. 422। राकोवी, सेक्रेड बुक ऑफ इ ईस्ट, पृ. 194 (ब) एवं डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, भारतीय इतिहास एक दृष्टि, पृ. 48
आ. विजयन्द्र सूरि, वैशाली, जैन धर्म और दर्शन- पृष्ठ-162 39. डॉ. एच. सी. राय चौधरी, पोलिटीकल हिस्ट्री ऑफ ऐंडियण्ट इंडिया, पृ. 52-53
के. पी. जायसवाल, हिन्दू पॉलिटी, पृ. 48 अंगुत्तर निकाय अदुकथा 2/4/5 (Homage to Vaisali, Page 45) (महापंडित राहुल सांकृत्यायन का अनुवाद) आचार्य विजयेन्द्र सूरि, Homage to vaishali, page-164
'वैशाली का प्रजातंत्र'- Homage to vaishali, page-39 44. मज्झिमनिकाय 1/4/5 पृ. 140
दीघनिकाय- महापरिनिब्बाण सुत्त, पृ. 118 46. वैशाली गणतंत्र, प्राकृत विद्या, जनवरी-जून, 2002, वैशालिक महावीर - विशेषांक
पृ.71-72 47. दीघनिकाय- भाग-2, महापरिनिर्वाण सुत्त, अध्याय-एक एवं जयदेव विद्यालंकार,
Homage to vaishali, page-28 भारत का संविधान मूल हस्ताक्षरित प्रति का पृष्ठ 63 पर जैनधर्म के 24वें तीर्थकर के चित्र के नीचे निम्न गरिमामय वाक्य अंकित है"चौबीसवें तीर्थकर वर्धमान महावीर ध्यान मुद्रा में (भारतीय संविधान में उत्कीर्णित लेख-प्रति का निदर्शन) जैन मत आध्यात्मिक पुनर्जागरण की एक विशिष्ट धारा है, जोकि मनुष्य के आचारा-विचार को उदात्त बनाने के साथ-साथ इसकी प्राप्ति के लिए अहिंसा पर बल देती है। यही अहिंसा महात्मा गाँधी के हाथों ब्रिटिश साम्राज्य से
राजनैतिक संघर्ष करने में सशक्त अस्त्र बनी।" 49. महावस्तु (11,118) 50. (अ) डॉ. राधा कुमुद मुकर्जी, Homage to vaishali, page-7 (मूल अंग्रेजी
अगले पृष्ठ पर है)
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