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जैन-दर्शन नास्तिक नहीं
डॉ. शिवकुमार शर्मा मिस्र को पराजित करने के बाद, जूलियस सीजर ने मिस्रवासियों की बावत कहा"यह लोग पुस्तकों की सहायता से जीवन को स्वप्न में व्यतीत कर देते हैं, जीना नहीं जानते।" भारतवासियों की बावत भी कुछ विदेशियों का ख्याल ऐसा ही है। जब वे हमें दार्शनिकों की जाति कहते हैं, तो यह सम्मान के नहीं, अपितु तिरस्कार के शब्द होते हैं। कुछ वर्ष पहले जापानी कहते थे कि भारतवासी राजनीतिक-निर्वाण की अवस्था में है। दार्शनिक विवेचन मस्तिष्क का काम है। यदि उज्ज्वल मस्तिष्क के साथ, पवित्र हृदय और बलिष्ठ बाहु विद्यमान नहीं होते, तो यह मस्तिष्क का दोष नहीं। प्राचीन भारत से जो पैतृक संपत्ति हमें प्राप्त हुई है उसमें भारतीय-दर्शन एक अनमोल भाग है।' ___ पाश्चात्य दार्शनिक अरस्तु का कथन है- "दर्शन का प्रारंभ आश्चर्य से होता है" वस्तुतः इस चित्र-विचित्र विश्व और विश्व के क्रिया-कलाप को देखकर मानव मस्तिष्क चकित रह जाता है तथा वह यह विचार करने के लिये बाध्य हो जाता है कि सुप्रतिष्ठित तथा सुव्यवस्थित इस जगत् का कर्ता कौन है? यह विश्व कहाँ से आया है? हम कहाँ से आये हैं? यथार्थ सत्ता क्या है? आदि। इसी प्रकार के अंकगणित विस्मयकारी प्रश्नों के समाधानार्थ मानवमस्तिष्क अनवरत रूप से विचारशील रहता है। निरंतर चिंतन की इस कला का नाम ही दर्शन है।
दृश् धातु से करण अर्थ में ल्युट् प्रत्यय करने पर दर्शन शब्द बनता है जिसका अर्थ है देखना।" दृश्यते अनेनेति दर्शनम्' अर्थात् जिसके द्वारा देखा जाये अर्थात् विचार किया जाये वह दर्शन है। संक्षेप में तत्वों के युक्तिपूर्वक सूक्ष्म ज्ञान के प्रयास को दर्शन कहा जाता है। अनेक भारतीय दर्शनों में प्रयुक्त सम्यग्दर्शन इसी अर्थ का द्योतक है।
द्रष्टव्य- सम्यक्दर्शनसम्पन्नः कर्मभिर्निबध्यते। दर्शनेन विहीनस्तु संसारं प्रतिपद्यते॥
-मनुस्मृति 6/74 वैदिक और अवैदिक भारतीय दर्शन की ये दो प्रमुख शाखायें है। इन्हें ही प्राचीन वर्गीकरण के आधार पर आस्तिक और नास्तिस्क कहा जाता है। अवैदिक दर्शनों को नास्तिक कहने का कारण यह है कि ये वेदों को प्रामाणिक नहीं मानते हैं। (नास्तिको वैदनिन्दक:) किन्तु यदि सूक्ष्मदृष्टि से चिंतन करें तो हम देखते हैं कि सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक दर्शनों की उत्पत्ति भी पूर्णतया लौकिक विचारों से हुई है। वेद का विरोध न करने वाले होने पर भी इनकी उत्पत्ति वैदिक विचारधारा से नहीं मानी जा सकती। अतः अवैदिक दर्शनों में जैन और बौद्ध दर्शन को नास्तिक कहना उचित नहीं है। क्योंकि ये दर्शन, स्वर्ग,