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अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010
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इतिहासतत्वज्ञ महोदधि विजयेन्द्र सूरि के अनुसार 'महावीर स्वामी के कुल चातुर्मासों में से 19 चातुर्मास विदेह में हुए थे- 12 चातुर्मास वैशाली में, 6 मिथिला में और एक अस्थि गांव (आधुनिक 'हाथागांव) में। इन चातुर्मासों से यह भी प्रकट है कि महावीर स्वामी के समय मिथिला नगर की सत्ता तो थी, पर वह प्रमुखतम नगर न था।'
आचार्य विजयेन्द्र सूरि के अनुसार 'भगवान का मुख्य श्रावक आनन्द वैशाली के निकट स्थित वाणिज्यग्राम का गृहपति था और वाणिज्य ग्राम का राजा जितशत्रु भी भगवान का भक्त था।''भगवान अपने केवलज्ञान के बाद एक बार कुण्डपुर भी आये थे। आपकी इस यात्रा में ऋषभदत्त और देवानन्दा ने दीक्षा ली थी।
मगधराज श्रेणिक- बिंबसार, अजातशत्रु और राजा चेटक भगवान महावीर के अनुयायी थे। नौ लिच्छवि नौ मल्ल इस प्रकार अठारह काशी-कौशल के गणराजाओं ने मिलकर दीप ज्योति जलाकर भगवान महावीर का निर्वाण महोत्सव मनाया। इस प्रकार इन गणराजाओं ने भगवान महावीर और उनके दर्शन/सिद्धांतों के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा व्यक्त की। धर्मसंघ और गणसंघ का मिलन अद्भुत था।
भगवान महावीर ने कर्मबंधन से मुक्ति हेतु सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता का उपदेश दिया। इसकी छाप वैशाली गणतंत्र के दर्शन, कार्यप्रणाली और लोकजीवन में स्पष्ट परिलक्षित होती है। वैशाली गणसंघ की शासन सभा सम्यक्दर्शन की प्रतीक है। न्यायाधि कारी और न्यायप्रक्रिया सम्यग्ज्ञान की प्रतीक है और विधि-विधानों के क्रियान्वयन की पद्धति-कार्यपालिका सम्यक्चारित्र की प्रतीक है। राजा चेटक और सिद्धार्थ आदि भगवान पार्श्व के चातुर्मागी मार्ग (अहिंसा, सत्य, अचौर्य और अपरिग्रह) के अनुयायी थे। महावीर ने पंचमव्रत ब्रह्मचर्य (शील) का उपदेश दिया। वासोकुण्ड-वैशाली में आज भी परंपरागत रूप से परिवार में कोई एक ब्रह्मचारी होता है और नारियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। ऊँच-नीच के वर्ग भेद की भावना का वहां अभाव है। सर्वोदय, पवित्र-जीवन, अविरोध और सर्वसहिष्णुता के तत्त्व जन सामान्य में विद्यमान हैं। वहां की 'वथान परंपरा' महावीर द्वारा उपदेशित श्रेष्ठ श्रावक की दशमी प्रतिमा अनुमति त्याग- का सूचक है। वासोकुण्ड- वैशाली के लोक जीवन में महावीर और उनके उपदेश की धरोहर दैनिक जीवन में परिलक्षित होती है। लोकगीत और कुल गीतों में महावीर की विद्यमानता इतिहास की अमूल्य धरोहर है। इस उद्देश्य हेतु लेखक की कृति 'भगवान महावीर-जन्मभूमि का सच' पठनीय है। वैशाली (लिच्छवी गणराज्य) का वैभव एवं परंपरा
महावीर- बुद्ध, काल में भारत के सोलह जनपदों में बज्जि और मल्ल जनपद का उल्लेख हुआ है। और ग्यारह गणराज्यों में मल्ल-पावा, मल्ल-कुशीनारा, विदेह-मिथिला, लिच्छवी-वैशाली और नाय-(ज्ञातृक) वैशाली का उल्लेख हुआ है। इन गणराज्यों में लिच्छवी वैशाली अत्यंत प्रभावी, समृद्ध और शक्तिशाली था। इस का उल्लेख बौद्ध और श्वेताम्बर, साहित्य में हुआ है। वैशाली महात्मा बुद्ध को अत्यंत प्रिय थी, यह उनकी