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अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010
31 वज्जिसंघ के सूत्रधार के रूप में जिसका प्रधान उद्देश्य था स्वस्थ, सहज सामूहिक जीवन के प्रति अपनापन इसकी सफल परिणति थी गणतंत्र की स्थापना और दूसरा- महावीर वर्द्धमान की दिव्य विभूति का अवतरण जिनका उद्घोष था सर्व जीवों को अभयदान, अहिंसा, अपरिग्रह एवं आत्मगत स्वावलम्बन से परमात्मत्व की प्राप्ति और अविरोधसहिष्णु-समतामूलक- समाज की स्थापना। इन दोनों बिन्दुओं पर विचारणा अपेक्षित है। सर्वप्रथम महावीर- वर्द्धमान के पितृ और मातृकुलों की पृष्ठभूमि देखेंगे।
डॉ. कामता प्रसाद जैन के मतानुसार 'भगवान महावीर के पिता का नाम नृप सिद्धार्थ था और भगवान की माता का नाम त्रिशला प्रियकारणी वैशाली के वज्जियन राजसंघ के प्रमुख राजा चेटक की पुत्री थीं। नृप सिद्धार्थ के बारे में यह कहा जाता है कि वे नाथ (ज्ञातृ) वंशीय क्षत्रियों की ओर से वज्जियन राजसंघ में सम्मिलित थे। इन ज्ञातृवंशी क्षत्रियों की मुख्य राजधानी कुण्डनगर थी, जो वैशाली के निकट अवस्थित थी। नृप सिद्धार्थ स्वयं नाथवंशीय (ज्ञातृवंशीय) काश्यपगोत्री क्षत्री थी। भगवान महावीर अपने इस क्षत्रिय वंश- ज्ञात्रि अथवा ज्ञातृवंश के कारण ही बौद्ध ग्रंथों में निग्रंथ नातपुत्त के नाम से उल्लिखित हुए हैं। भगवान का सुखकारी जन्म इन्हीं प्रख्यात दम्पति के यहां कुण्डनगर में हुआ था।' नृप सिद्धार्थ जैन धर्मानुयायी थे।
दिगम्बराचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण में महावीर वर्द्धमान के जीवन-वृत्त का वर्णन किया है। उनके पिता नाथवंशी राजा सिद्धार्थ विदेह-देश के कुण्डपुर के शासक थे। उनके माता का नाम प्रियकारिणी (त्रिशला) था। महावीर के गर्भ में आने के छह माह पहले से सिद्धार्थ के आंगन में प्रतिदिन साढ़े सात करोड़ रत्नों की वर्षा होने लगी। महावीर का जन्म चैत्र-शुक्ल त्रयोदशी को हुआ। देवताओं ने जन्मोत्सव मनाया। इन्द्र ने पांडुकशिला पर बालक वर्द्धमान का अभिषेक किया। तीस वर्ष तक वर्द्धमान कुमार अवस्था में रहे और अपने लोक-दायित्वों का निर्वाह करते रहे। पश्चात् उन्हें पूर्वभव का स्मरण हुआ और उन्होंने आत्मकल्याण और लोक हितार्थ वस्त्र-आभूषण उतार का संयम धारण किया और अंतर-बाह्य से निर्ग्रन्थ हो गये। उसी समय उन्हें मन:पर्ययज्ञान उत्पन्न हुआ। प्रथम आहार कूलग्राम के राजा कूल के यहाँ हुआ। वर्द्धमान ने बारह वर्ष तक मौन आत्म- साधना कर केवलज्ञान (दिव्यज्ञान) प्राप्त किया। वे सर्वज्ञ हो गये। समवसरण सभा के माध्यम से वर्द्धमान- महावीर ने 30 वर्ष तक जगत के जीवों को जगत की नित्यता, आत्मा की स्वतंत्रता, स्वाधीनता और परमात्मा बनने का उपदेश दिया। पश्चात् 527 ईसा पूर्व बहत्तर वर्ष की आयु में मध्यम पावा से परिनिर्वाण हुआ। महावीर की सर्वज्ञता बुद्ध ने भी स्वीकार की। (माज्झिमनिकाय 2/214)।
मातृ कुल के बारे में आ. गुणभद्र ने दर्शाया है कि 'सिंध्यवाख्यविषये' नदी प्रधान देश की वैशाली नगरी के राजा चेटक थे, जो जिनेन्द्र देव के भक्त थे। उनकी रानी का नाम सुभद्रा था। चेटक के दश पुत्र थे। इन पुत्रों के सिवाय सात ऋद्धियों के समान सात पुत्रियाँ थी, यथा-प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलकी, ज्येष्ठा और चन्दना। विदेह देश के कुण्डपुर के नाथवंशी राजा सिद्धार्थ से प्रियकारिणी का विवाह हुआ। दशार्ण