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अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 आदि-वस्तु हैं। ऐसा भी कोई कहते हैं। यह प्रकरण भी बिल्कुल आगमविरुद्ध है, ऐसा कोई उल्लेख कहीं नहीं मिलता।
__22. भाग 2 पृ. 181 पर भगवान आदिनाथ ने 100 पुत्रों से कहा- 'अब अधिक उपदेश की जरुरत नहीं है। अब अपने शरीर के अलंकारों का त्याग कीजिए। राजवेष को छोड़कर तापसी वेष धारण कीजिए। बाद में दीक्षा होने के बाद भगवान आदिनाथ ने 'आत्मसिद्धिरेवास्तु' इस प्रकार आशीर्वाद भी दिया। यह सारा वर्णन आगम सम्मत नहीं है। तीर्थकर केवली इस प्रकार आशीर्वाद या दीक्षा नहीं देते हैं। ____23. भाग 2 पृ. 177 पर लिखा है कि जिनेन्द्र भगवान के सिंहासन के चारों ओर हजारों केवली विराजमान थे। यह प्रकरण भी आगम सम्मत नहीं है।
24. भाग 2 पृ.214 पर तीर्थकर प्रभु के अंतिम संस्कार के समय तीन कुण्डों को तीन शरीर की सूचना देने वाला बताया है। यह प्रकरण बिल्कुल गलत है। ___25. भाग 2 पृ.215 पर भगवान आदिनाथ के माघ वदी चतुर्दशी की निर्वाण होने से शिवरात्रि के प्रचलन का संबन्ध जोड़ा गया है। यह प्रकरण आगम सम्मत नहीं है।
26. भाग 2 पृ.217 पर अष्टापद की किस प्रकार रचना की गई। यह प्रकरण लिखा है जो किसी भी आगम से मेल नहीं खाता।
27. भाग 2 पृ.220 पर भरतेश्वर की काली मूंछों का वर्णन है, जबकि आगम के अनुसार 63 शलाका पुरुषों के दाढ़ी-मूंछ नहीं होते हैं।
28. भाग 2 पृ.220 पर भरतेश्वर को महान कामी और भोगी बताया है। लिखा है 'जिन स्त्रियों पर जरा बुढ़ापे का असर हुआ, उनको मंदिर में ले जाकर आर्यिकाओं से व्रत दिलाते थे और उनके पास ही छोड़कर नवीन जवान स्त्रियों से विवाह कर लेते थे। ऐसे भोगी राजा को रत्नाकर कवि ने भाग 1 पृ.169 पर शुद्धोपयोगी कैसे कह दिया, यह आश्चर्य की बात है।
29. भाग 2 पृ. 221 पर लिखा है कि भरतेश्वर की रोज नई-नई शादियाँ होती रहती थी। लिखा है 'देश-देश से प्रतिदिन कन्याएँ आती रहती हैं। राज भरतेश्वर का विवाह चल रहा है। इस प्रकार वे नित्य दूल्हा ही बने रहते हैं। ___30. भाग 2 पृ.220 पर लिखा है कि भरतेश्वर अर्ककीर्ति कुमार को बुलाकर बोले, 'इधर आओ, इस राज्य को तुम ले लो, मुझे दीक्षा के लिए भेजो।' अर्ककीर्ति के आनाकानी करने पर उन्होंने कहा- मैं घर में रह तो सकता हूँ, परन्तु आयुष्य कर्म तो बिल्कुल समीप आ पहुंचा है। आज ही घातिया कर्मों को नाश करूँगा और कल सूर्योदय होते ही मुक्ति प्राप्त करने का योग है। भरतेश्वर ने पहले दिन दीक्षा ली, शाम को केवलज्ञान हुआ और अगले दिन मोक्ष प्राप्त किया। यह प्रकरण बिल्कुल गलत है। आदिपुराण पर्व 47 के अनुसार केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान भरत ने समस्त देशों में चिरकाल तक विहार किया। (श्लोक 397-398)। ___31. इस ग्रंथ में गुरु हंसनाथ की बहुत चर्चा है। ऐसा प्रतीत होता है कि रत्नाकर वर्णी के गुरु हंसनाथ नाम के जैनेतर कवि होंगे।