________________
अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 5. भाग 1 पृ. 171 पर कहा है कि भरतेश ने सबसे पहले मंदिर में शासन देवताओं को अर्घ्य प्रदान कर श्री भगवन्त का स्तोत्र व जप किया। यह कथन किसी भी शास्त्र से मेल नहीं खाता। भरतेश के काल में शासन देवताओं की कल्पना ही नहीं थी।
6. भाग 1 पृ. 179 पर लिखा है कि सम्राट भरत ने जल, चन्दन आदि अष्ट द्रव्यों से अपनी माता की पूजा की। यह कथन एकदम आगम विरुद्ध है।
7. भाग 1 पृ. 250 पर लिखा है कि चक्रवर्ती के रत्नों का उपभोग वे स्वतः ही कर सकते हैं। यह भी लिखा है कि कुछ लोग ऐसा वर्णन करते हैं कि भरतेश्वर ने जयकुमार, जो सेनापति रत्न है उसे भेजकर उसके हाथ से विजयार्द्ध के वज्रकुमार का स्फोटन कराया। परन्तु यह ठीक नहीं है।
इस संबन्ध में जब हम आदिपुराण पर्व 31 श्लोक 122 को देखते हैं तो उसमें लिखा है 'अश्वरत्न पर बैठे हुए सेनापति ने 'चक्रवर्ती की जय हो' इस प्रकार कहकर दण्डरत्न से गुफाद्वार का ताड़न किया, जिससे बड़ा भारी शब्द हुआ।' इस आदिपुराण के कथन को जो महान आचार्य द्वारा लिखित है, रत्नाकर कवि ने गलत बताया है।
8. भाग 1 पृ. 301 पर लिखा है कि व्यन्तरों ने भरतेश्वर की आज्ञा पाते ही शासनों के रक्षक शासक देवों को खूब ठोका, जिससे उनके सब दांत टूट गये।
9. भाग 1 पृ. 288 पर लिखा है कि जब जयकुमार ने आवर्तक राजा को भरतेश्वर के सामने पेश किया तो सम्राट ने अपने पादत्राण को संभालने वाले चपरासी से कहा कि तुम इसमें लात दो और चपरासी ने बांये पैर से लात मारी।
10. भरत और बाहुबलि के मध्य में जो दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध और मल्लयुद्ध हुए थे, उसका इसमें वर्णन ही नहीं है। पृ. 414 में कहा है कि भरतेश ने बाहुबलि से कहा भाई! अब अपने मुख से मैंने कहा कि मैं हार गया और तुम जीत गये.....इस प्रकार भरतेश्वर ने अपनी हार बताई।
यह प्रकरण आदिपुराण से बिल्कुल मेल नहीं खाता है। आदिपुराण पर्व 36 में लिखा है कि भरत और बाहुबलि के बीच दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध और मल्लयुद्ध हुए और तीनों में बाहुबलि ने विजय प्राप्त की। रत्नाकर कवि ने पूरा भरतेश वैभव अपनी इच्छानुसार लिखा है अतः अप्रामाणिक है।
11. भाग 1 पृ.415 पर लिखा है कि भरतेश्वर ने चक्र रत्न को बुलाकर कहा कि चक्ररत्न जाओ। तुम्हारी मुझे जरुरत नहीं, तुम्हारा अधिपति यह बाहुबलि है। जब चक्ररत्न आगे नहीं गया तब भरतेश्वर क्रोध से कहने लगे अरे चक्रपिशाच! मैं अपने भाई के पास जाने के लिए बोलता हूँ तो भी नहीं जाता है, इस प्रकार कहते हुए उसे धक्का देकर आगे सरकाया, परन्तु वह आगे नहीं बढ़ा।
इस प्रसंग के संबन्ध में आदिपुराण पर्व 36 श्लोक,66 में इस प्रकार कहा है 'स्मरण करते ही वह चक्ररत्न भरत के समीप आया, भरत ने बाहुबलि पर चलाया, परन्तु उनके अवध्य होने से वह उनकी प्रदक्षिणा देकर तेजरहित हो उन्हीं के पास जा ठहरा। अतः रत्नाकर कवि का प्रसंग बिल्कुल आगम विरुद्ध है।