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अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010
11 32. भाग 2पृ.237 पर लिखा है 'ज्ञानावरणी की 4 प्रकृतियों का अंत पहले से हो चुका है, अब बचे हुए धूर्तकर्मों को भी मार गिराउँगा। तदुपरांत ध्यान खड्ग के बल से प्रचला व निद्रा का नाश किया, साथ में अन्तराय व दर्शनावरण की शेष प्रकृतियों को नष्ट किया। यह प्रकरण बिल्कुल आगम विरुद्ध है।
33. निगोद से निकलकर, मनुष्य पर्याय धारणकर, मोक्ष प्राप्त करने वाले महाराजा भरत के 923 पुत्रों की इसमें कोई चर्चा नहीं है।
उपर्युक्त प्रसंगों के आधार से यह निष्कर्ष निकलता है कि इस ग्रंथ के रचयिता प्रामाणिक नहीं है, उन्होंने राजा आदि को प्रसन्न करने के लिए अपने मन के अनुसार कल्पित कथा गढ़कर लोक में सम्मान प्राप्त करने के लिए इस ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ की रचना 16वीं शताब्दी में हुई। उनके सामने भरतेश्वर के चरित्र का निरुपण करने वाले आचार्य प्रणीत शास्त्र उपलब्ध थे परन्तु उन्होंने उनका आधार न लेकर, लोक को रंजायमान करने वाला यह अप्रामाणिक ग्रंथ रच डाला। उनकी जैनधर्म पर कोई आस्था नहीं थी और न उनको सैद्धान्तिक ज्ञान ही था। उनका जीवन कामवासना से पूरित रहा। भरतेश्वर को क्षायिक सम्यक्त्व था अत: उसको सांसारिक भोगों में आसक्ति का अभाव था, परन्तु रत्नाकर कवि ने अपनी प्रवृत्ति एवं वासना के अनुसार भरतेश्वर को महान भोगी प्रदर्शित किया है। वास्तविकता यह है कि यह ग्रंथ कथावस्तु तथा सिद्धांत के आधार से एकदम अप्रामाणिक है।
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- अधिष्ठाता श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर जयपुर (राजस्थान)
स्याद्वाद जैन दर्शन का
अजेय किला है ... संख्या बुद्धिमानी की निशानी है शक्कर मीठी है यह पानी में घुल मिल जाती है तो अपना अस्तित्व व्यापक बना देती है। शक्कर के मिल जाने पर लोग कहते है 'जल मीठा है' पर वास्तविक बात तो यह है कि शक्कर की मिठास है। जैन भी अन्यों में घुल कर उनमें चुपचाप मधुरता भरते रहते है। स्याद्वाद जैन अर्शन का अजेय किला है। जिसमें वादी प्रतिवादी के मायामय गोले प्रविष्ट नही हो सकते
- आचार्य विनोवाभावे, जैन भारती वर्ष-15 अंक-16