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अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 शान्ति-क्रांति द्रष्टा आगमचक्षु साधु की वर्तमान तीर्थनिर्माण और पंचकल्याणकों की आपाधापी मय मैराथन दौड़ से कौन सी क्रांति मय शान्ति उद्भूत होने वाली है यह भविष्य ही बतलायेगा। श्रमण चर्या के विषय में आचार्य कुन्दकुन्द का स्पष्ट उद्घोष है
जो सुत्तो ववहारे सो जोइ जग्गाए सकज्जम्मि। जो जग्गदि ववहारे सो सुत्तो अप्पणो कज्जे॥31॥
- मोक्षपाहुड़ जो मुनि व्यवहार के कार्यों में सोता है, उदासीन है, वह अपने आत्मध्यान के कार्य में जागता-सावधान है, तथा जो व्यवहार के कार्यो में जागता है (सावधान है) वह आत्म स्वरूप के चिन्तवन में सोता है(उदासीन है)।
- वीर सेवा मंदिर दरियागंज, नई दिल्ली
दिगम्बर मुनि का अभाव धर्म
को ले डूबेगा ...निश्चय समझिए कि यदि दिगम्बर गुरू के आचार-विचार में बदलाव आता है तो तो दिगम्बर धर्म की खैर नहीं- उसका लोप अवश्यंभावी है। बौद्धधर्म के भारत से पलायन और उस धर्म में शिथिलता आने के मूल कारणों में भी उनके साध्वाचार में शिथिलता आना ही मुख्य कारण था- यह हम देख ही चुके हैं। जैनधर्म के भट्टारकों के ह्रास का कारण भी यही है।
...... पं. पदमचन्द शास्त्री, संपादक 'अनेकांत' वर्ष 40 किरण 4, पृष्ठ 33