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जैन दर्शन में पुद्गल द्रव्य
- कुमार शिव शंकर
पुद्गल जैन दर्शन का विशिष्ट पारिभाषिक शब्द है । यह पुद् और गल् के योग से बना है। पुद् का अर्थ है- पूर्ण होना, मिलना / जुड़ना, गल् का अर्थ है- गलना/हटना/टूटना। पुद्गल परमाणु, स्कन्ध अवस्था में परस्पर मिलकर अलग-अलग होते रहते हैं तथा अलग होकर मिलते-जुड़ते रहते हैं। इनमें टूट-फूट होती रहती है। इसे जुड़ने और टूटने को विज्ञान की भाषा में फ्यूजन एण्ड फिसन कह सकते हैं। छह द्रव्यों में एक पुद्गल में ही संश्लिष्ट और विश्लिष्ट होने की क्षमता है, अन्य पाँच में नहीं। इसलिए पुद्गल शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है "पूरण गलन स्वभावत्वात् पुद्गलः " अर्थात् जो द्रव्य निरंतर मिलता गलता रहे, बनता - बिगड़ता रहे, टूटता जुड़ता रहे वह पुद्गल है। पूरण- गलन स्वभावी होने से पुद्गल यह इसकी सार्थक संज्ञा है।
जगत में जो कुछ भी हमारे देखने, चखने और सूँघने में आता है, वह सब पौद्गलिक पिण्ड ही है। स्पर्श, रस, गंध और वर्ण इसके विशेष गुण हैं। इसलिए इसे रूपी या मूर्तिक कहा जाता है। जगत् में ऐसा कोई भी पुद्गल नहीं है जिनमें रूप, रस, गंध और स्पर्श न पाए जाते हों ।'
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न्याय-वैशेषिक दर्शनों में जिसे 'भौतिक तत्त्व कहा गया है एवं विज्ञान ने जिसे मैटर कहा है, उसे ही जैन दर्शन में पुद्गल कहा गया है। जैन दर्शन के अनुसार जो द्रव्य प्रतिक्षण पूर्ण होता है और नष्ट होता है, बनता है और बिगड़ता है, जुड़ता है और टूटता है वह पुद्गल है।
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र (स्वोपज्ञभाष्य), धवला, हरिवंश पुराण, सर्वदर्शनसंग्रह, तत्त्वार्थराजवार्तिक आदि अनेक ग्रंथों में मिलना, नष्ट होना जिसका स्वभाव है, ऐसे पदार्थ को 'पुद्गल' कहा गया है। पुद्गल एक ऐसा द्रव्य है, जिसे स्पर्श किया जाता है, जिसका स्वाद लिया जाता है, जो सूँघा जाता है, जो दृश्य है अर्थात् उसमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण ये चार अंग अनिवार्य रूप से होते हैं।
परमाणु से लेकर महास्कन्ध पृथ्वी तक के पुद्गल द्रव्य में पाँच रूप, पाँच रस, दो गंध और आठ स्पर्श, ये चार प्रकार के गुण विद्यमान हैं, जो शब्द रूप है, भाषा, ध्वनि आदि के भेदों से अनेक प्रकार का पुद्गल पर्याय है। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं
वण्णरसगंधफासा विज्जंते पोग्गलस्स सुहुमादो। पुढवीपरियंतस्य सद्यो पोग्गलो चित्तो ॥
अर्थात् पुद्गल द्रव्य रूप, रस, गंध और स्पर्श ये चार प्रकार के गुण होते हैं तथा शब्द भी पुद्गल की पर्याय है। रूप पांच हैं- नीला, पीला, काला, लाल। 5 रस हैं- तीखा,